मक्खी का लोभ

एक व्यापारी अपने ग्राहक को शहद दे रहा था| अचानक व्यापारी के हाथ से छूटकर शहद का बर्तन गिर पड़ा| बहुत-सा शहद भूमि पर ढुलक गया| जितना शहद व्यापारी उठा सकता था, उतना उसने ऊपर-ऊपर से उठा लिया; लेकिन कुछ शहद भूमि में गिरा रह गया|

“मक्खी का लोभ” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

बहुत-सी मखियाँ शहद की मिठास के लोभ से आकर उस शहद पर बैठ गयीं| मीठा-मीठा शहद उन्हें बहुत अच्छा लगा| जल्दी-जल्दी वे उसे चाटने लगीं| जब तक उनका पेट भर नही गया, वे शहद चाटने में लगी रहीं|

जब मक्खियों का पेट भर गया, उन्होंने उड़ना चाहा| लेकिन उनके पंख शहद से चिपक गये थे| उड़ने के लिये वे जितना छटपटाती थीं, उतने ही उनके पंख चिपकते जाते थे| उनके सारे शरीर में शहद लगता जाता था|

बहुत-सी मक्खियाँ शहद में लोट-पोट होकर मर गयीं| बहुत-सी पंख चिपकने से छटपटा रहीं थीं| लेकिन दूसरी नयी-नयी मक्खियाँ शहद के लोभ से वहाँ आती-जाती थीं| मरी और छतपटाती मक्खियों कू देखकर भी वे शहद खाने का लोभ छोड़ नहीं पाती थीं|

मक्खियों की दुर्गति और मुर्खता देखकर व्यापारी बोला- ‘जो लोग जीभ के स्वाद के लोभ में पड़ जाते हैं, वे इन मक्खियों के समान ही मूर्ख होते हैं| स्वाद का थोड़ी देर का सुख उठाने के लोभ से वे अपना स्वास्थ्य नष्ट कर देते हैं, रोगी बनकर छटपटाते हैं और शीघ्र मृत्यु के ग्रास बनते हैं|’