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महारानी का हार

हस्तिनापुर की रानी व उसकी सखियाँ तालाब में नित्य स्नान किया करती थी| एक दासी जो प्रतिदिन उनके कपड़ों और आभूषणों की निगरानी करती थी, इस उबाऊ काम से काफ़ी परेशान थी|

एक दिन तालाब किनारे एक पेड़ पर एक बंदरिया आ बैठी| वह सोच रही थी कि यदि रानी का हार उसके हाथ लग जाए तो उसे पहनकर वह कितनी सुंदर लगेगी| लेकिन वह हार हाथ कैसे लगे? तभी उसकी दृष्टि ऊँघती हुई दासी पर गई तो उसने अच्छा मौका देखकर वह हार उठा लिया और झटपट पेड़ के ऊपर जा चढ़ी| कहीं सैनिक इस हार को न देख ले, इसलिए उसने हार को पेड़ की खोह में छिपा दिया|

उधर कुछ देर बाद दासी की आँख खुली तो रानी का हार गायब देखकर हैरान हो गई| वह ज़ोर से चिल्लाई, ‘चोर! चोर! किसी ने महारानी का हार चुरा लिया है|’

महल के सैनिक दौड़ते हुए वहाँ पहुँचे|

‘क्या तुमने किसी को चोरी करते हुए देखा है?’

‘नहीं|’

‘ज़रुर वह दीवार फाँदकर भाग गया होगा| चलो, बाहर चलकर देखें|’ इतना कहकर सैनिक बाहर निकल गए|

बाहर निकलते ही उन्हें एक बूढ़ा लकड़हारा दिखाई दिया|

‘वह रहा चोर, पकड़ लो उसे|’ उन्होंने लकड़हारे को पकड़ लिया और पूछा, ‘बता, हार कहाँ है?’

‘क…कैसा हार…?’

‘यह ऐसे नही बताएगा, इसकी मरम्मत करनी पड़ेगी ,तब अपने आप मुहँ खोलेगा|’

लकड़हारे का दम सूख गया| उसे बचने की और कोई युक्ति न सूझी तो उसने पास ही जा रहे पुजारी की ओर इशारा कर दिया कि उसने वह हार पुजारी को दे दिया है|’

‘चलो उसे पकड़ो|’ सेनापति ने कहा|

उन्होंने पुजारी को भी पकड़ लिया और उससे पूछा, ‘बताओ कहाँ है हार?’

पुजारी असमंजस में पड़ गया| उसे लगा यह शायद उसके पिछले जन्मों के पापों का फल है| फिर वह बोला, ‘मुझे हाथ मत लगाना, अभी बताता हूँ|’ फिर उसने रास्ते से गुज़र रहे एक गवैये की ओर इशारा कर दिया कि वह हार उसने उसे दे दिया|

उन्होंने गवैये को पकड़ लिया| गवैया भी असमंजस में पड़ गया| उसने भी सोचा, शायद यह उसके पिछले जन्मों का फल है| उसने अपनी जान बचाने के लिए एक नर्तकी, जो डोली में जा रही थी, उसकी ओर इशारा कर दिया कि उसने वह हार उस नर्तकी को दे दिया है| सैनिकों ने उसे धर लिया लेकिन नर्तकी ने हामी नहीं भरी|

सैनिकों ने उन चारों को पकड़कर राजा के हवाले कर दिया| मगर उन सबने हार के बारे में अनभिज्ञता ज़ाहिर की||

तब राजा ने क्रोध में आकर उन चारों को हवालात में बंद करने का आदेश दे दिया|

उसके बाद राजा ने अपने मंत्री को आदेश दिया, ‘तुम अपनी चतुराई से पता करो की हार इनमें से किसके पास है|’

‘जो आज्ञा महाराज|’ मंत्री ने कहा|

मंत्री ने इस समस्या पर विचार किया, ‘महल पर कड़ा पहरा है| लकड़हारा महल में बिना किसी के देख आ-जा नही सकता| हो सकता है वह मार से बचने के लिए झूठ बोल रहा हो| लेकिन यदि वह निर्दोष है तो अपराधी कौन है? कौन ले जा सकता है वह हार?’ सोचता हुआ वह बाग में जा पहुँचा|

अचानक उसकी नजर पेड़ पर बैठी बंदरिया पर जा पड़ी| उसके दिमाग में बिजली-सी कौंधी, ‘यह काम तो कोई बंदरिया भी कर सकती है|’ उसने सैनिकों को बुलाया और उनकी सहायता से कुछ बंदरियों को पकड़कर उनके गले में काँच के मनकों की मालाएँ पहनाकर उन्हें छोड़ दिया|

गले में मालाएँ पहनकर बंदरियाँ गर्व से फूल उठी और एक-दूसरे को दिखाकर खुश होने लगी|

उधर जिस बंदरिया ने हार चुराया था, उसने जब अन्य बंदरियों को अपनी मालाओं का प्रदर्शन करते हुए देखा तो उसने भी देखा-देखी रानी को चुराया हुआ हार अपने गले में डाल लिया| वह भी बंदरियों से कहने लगी, ‘काँच के मनकों की माला पर तुम इतना क्यों इतरा रही हो? ये देखो मेरा हीरों से जड़ा हार|’

इतने में एक सैनिक की नज़र उस बंदरिया पर पड़ गई| वह चिल्लाया, ‘देखो वह रहा रानी का हार- उस बंदरिया के गले में, पकड़ों उसे|’

सब सैनिक उस बंदरिया की ओर लपके|

बंदरिया ने सोचा कि ये लोग हार लिए बिना उसे नही छोड़ेंगे| उसने हार नीचे फेंक दिया|

सैनिकों ने हार उठाकर मंत्री के हवाले कर दिया|

मंत्री अपनी सफलता पर खुशी से फूला नही समाया और राजा को वह हार पेश कर दिया|

राजा ने मंत्री को ईनाम दिया और नर्तकी को बुलाकर उससे क्षमा माँगी और लकड़हारे, पुजारी और गवैये को यह चेतावनी देकर छोड़ दिया कि आइंदा से सच बोला करे|

शिक्षा: दूसरों की देखा-देखी आडंबर या वैभव का प्रदर्शन नही करना चाहिए| लेकिन बदरियों को इतनी अक्ल कहाँ थी| दूसरी बात, निर्दोष पर बल प्रयोग नही करना चाहिए और न ही किसी के भय से झूठी स्वीकारोक्ति ही करनी चाहिए| दोनों का नतीजा घातक होता है|