महान संत
महर्षि रमण को कौन नहीं जानता! वे बहुत महान संत थे| अपने पास कुछ भी नहीं रखते थे| उनके तन पर कोपीन को छोड़कर कोई अन्य कपड़ा नहीं रहता था|
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एक बार उनकी कोपीन फट गई| वे किसी से कुछ भी नहीं मांगते थे|
जब तक बिना मांगे कोई न दे जाए, तब तक उन्हें इसी कोपीन से काम चलाना था, पर फटी कोपीन को कैसे पहनें? उन्होंने उसे सीने का निश्चय किया, पर इसके लिए उन्हें सुई-धागे की जरूरत थी| उन्हें भी वह मांग नहीं सकते थे तब उन्होंने बबूल के दो कांटे लिए| एक कांटे से दूसरे कांटे में छेद किया, फिर कोपीन में से धागे निकाले, उन्हें बटा, डोरा बनाया| उस डोरे को कांटे के छेद में डालकर फटी कोपीन को सी लिया और बड़े आनंद से उसे काम में लाते रहे|
संतों की महिमा अपरंपार है|