माँ की ममता
एक बार कण्व मुनि के पास दो महिलाएँ एक बच्चे के लिए झगड़ती हुई फैसला कराने के लिए आई|
दोनों ही महिलाएँ उस बच्चे को अपना बता रही थी| उनके पीछे-पीछे अनेक ग्रामीण भी थे| कण्व मुनि भी सोच में पड़ गए कि उनका फैसला वे किस तरह से करे|
आखिर उन्हें एक युक्ति सूझी| उन्होंने ज़मीन पर एक रेखा खींचकर बच्चे को उस पर लिटा दिया|
फिर वह दोनों महिलाओं को संबोधित करते हुए बोले, “तुम दोनों रेखा के इधर-उधर खड़ी हो जाओ और बच्चे को पकड़ लो| जो बच्चे को अपनी तरफ़ खींच ले जाएगी, वही बच्चे की असली माँ होगी|”
एक महिला ने बच्चे के पैर पकड़ लिए और दूसरी ने बच्चे के हाथ| फिर दोनों उस बच्चे को अपनी-अपनी तरफ़ खींचने लगी|
दर्द के मारे बच्चा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा|
तभी एक ने अपनी पकड़ ढीली करके बच्चे को छोड़ दिया और मुहँ ढाँपकर रोने लगी|
दूसरी औरत जीत की खुशी में झूम उठी और कहने लगी, ‘मैंने बच्चे को अपनी ओर खींच लिया है, इसलिए यह बच्चा मेरा है|’
अब कण्व मुनि ने लिए निर्णायक घड़ी आ गई थी|
उन्होंने फैसला दिया कि ‘यह बच्चा तुम्हारा नही है, बल्कि उसका है|’
सब लोग हतप्रभ से कण्व मुनि को देखते रह गए| उनकी समझ में नही आ रहा था कि उन्होंने यह फैसला किस आधार पर दिया है|
कण्व मुनि ने कहा, ‘जिस महिला ने बच्चा छोड़ा है वही असली माँ है| क्योंकि उससे अपने बच्चे का दर्द देखा नही गया| फिर बच्चे को दूसरी महिला के हवाले कर दिया|’
शिक्षा: अपने बच्चे की पीड़ा को उसकी माँ ही समझ सकती है| माँ ही होती है वह जो सारी रात गीले बिस्तर पर करवटें बदलकर बच्चे को सूखे में सुलाती है| बच्चे को कष्ट होता वह कैसे देख सकती है| माँ अपने बच्चे के लिए सर्वस्व कुर्बान कर देती है|