लालची कौआ

कंचनपुर के एक धनी व्यापारी के रसोईघर में एक कबूतर ने घोंसला बनाया हुआ था|

एक दिन एक लालची कौआ उधर आ निकला| वहाँ मछली को देखकर उसके मुहँ में पानी भर आया| मुझे इस रसोईघर में घुसना चाहिए, पर कैसे?

तभी उसकी निगाह कबूतर पर जा पड़ी| उसने सोचा यदि मैं कबूतर से दोस्ती कर लूँ तो शायद बात बन जाए|

कबूतर जब दाना चुगने बाहर निकला तो कौआ उसके साथ लग गया| थोड़ी ही देर बाद कबूतर ने जब पीछे मुड़कर देखा तो अपने पीछे कौए को पाया| उसने पूछा, ‘तुम मेरे पीछे क्यों लगे हो?’

‘तुम मुझे अच्छे लगते हो| इसीलिए तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ|’ कौए ने मीठे स्वर में कहा|

‘बात तो तुम ठीक कह रहे हो, मगर हमारा-तुम्हारा भोजन अलग-अलग है| मैं बीज खाता हूँ और तुम कीड़े|’ कबूतर ने कहा|

‘कोई बात नही, हम इकट्ठे रह लेंगे|, कौए ने चापलूसी की|

शाम को दोनों पेट भर कर वापस आ गए|

व्यापारी ने कबूतर के साथ कौए को भी देखा तो सोचा कि शायद उसका मित्र होगा|

एक दिन व्यापारी ने रसोइए से कहा, ‘आज कुछ मेहमान आ रहे है| उनके लिए स्वादिष्ट मछलियाँ बनाना|’

कौआ यह सब सुन रहा था|

रसोइए ने स्वादिष्ट मछलियाँ बनाई|

तभी कबूतर कौए से बोला, ‘चलो हम भोजन करने बाहर चलते है|’

मक्कार कौए ने कहा, ‘आज मेरा पेट दर्द कर रहा है, तुम अकेले ही चले जाओ|’

कबूतर भोजन की तलाश में बाहर निकल गया|

उधर कौआ रसोइए के बाहर निकलने का इंतजार कर रहा था| जैसे ही रसोइया बाहर निकला, कौआ तुरंत थाली की ओर झपटा और मछली का टुकड़ा मुहँ में भरकर घोंसले में जा बैठा और खाने लगा|

रसोइए को जब रसोई में खटपट की आवाज़ सुनाई दी तो वह वापस रसोई की ओर लपका| उसने देखा कौआ घोंसले में बैठा मछली का टुकड़ा मज़े से खा रहा है| रसोइए को बहुत गुस्सा आया और उसने कौए की गर्दन पकड़कर मरोड़ दी|

शाम को जब कबूतर दाना चुगकर आया तो उसने कौए का हश्र देखा| जब उसने घोंसले में मछली का अधखाया टुकड़ा पड़ा देखा तो उसकी समझ में आ गया कि उसने ज़रूर लालच किया होगा तभी उसकी यह हालत हुई है|

शिक्षा: दुष्ट प्रकृति के प्राणी को उसकी दुष्टता का फल अवश्य मिलता है| कबूतर से मित्रता की आड़ में कौआ अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता था| वह नही जानता था कि लालच के वशीभूत होकर प्राणों को संकट में डालनेवाले से बड़ा मूर्ख और कोई नही होता|