लालची फेरीवाला
दो फेरीवाले एक नदी किनारे मिले|
‘यार आजकल बहुत मंदा चल रहा है|’ एक फेरीवाले ने कहा|
‘तुम ठीक कहते हो| मैं सोच रहा हूँ कि नदी के पार जो शहर है वहाँ अपनी किस्मत आजमाई जाए|’ दूसरे फेरीवाले ने कहा|
फिर वे दोनों नाव में बैठकर नदी पार पहुँचकर शहर में प्रवेश कर गए|
फिर वह विपरीत दिशाओं में निकल गए|
‘आ गया फेरीवाला, सामान खरीदो-बेचो…आ गया फेरीवाला|’ एक फेरीवाले ने आवाज़ लगाई|
एक बुढ़िया घर के बाहर बैठी थी| तभी उसकी पोती फेरीवाले की आवाज़ सुनकर बाहर आई और अपनी दादी से बोली, ‘दादी माँ, यह पुराना कटोरा इस फेरीवाले को दे दे, इसके बदले में हम कुछ और ले लेंगे|’
उस बुढ़िया ने फेरीवाले को अपने पास बुलाया और उससे कटोरा खरीदने को कहा|
फेरीवाले ने उस कटोरे को देखा जो काफ़ी भारी था| उसने गौर से देखा तो पता चला कि वह तो सोने का है| उसके मन में लालच आ गया उसने बुढ़िया से कहा, ‘यह तो फूटी कौड़ी का भी नही है, मगर तुम्हारी हालत देखकर मैं इसे दस कौड़ी में खरीद लूँगा|’
‘ठीक है|’ बुढ़िया ने कहा|
‘मैं थोड़ी देर बाद वापस आऊँगा और तुम्हें दस कौड़ी देकर यह कटोरा ले जाऊँगा|’
थोड़ी देर बाद दूसरा फेरीवाला वहाँ आ पहुँचा| बुढ़िया ने उसे भी कटोरा दिखाया तो वह चकित रह गया| क्योंकि वह सोने का था|
‘माँ, यह तो सोने का है| मैं इसके बदले तुम्हें पाँच सौ सिक्के नकद और पाँच सौ सिक्कों का सामान दे सकता हूँ|’ दूसरे फेरीवाले ने कहा|
बुढ़िया को पुराना समय याद आ गया| जब उसका परिवार बहुत धनी था| उस समय का यह कटोरा किसी तरह बचा रह गया था| उसने वह कटोरा फेरीवाले को बेच दिया और बदले में पाँच सौ सिक्के नकद और पाँच सौ सिक्कों का सामान ले लिया|
थोड़ी ही देर बाद पहला फेरीवाला आ गया और उसने बुढ़िया से वह कटोरा माँगा और दस कौड़ी देने लगा|
बुढ़िया ने उस फेरीवाले को डाँटते हुए वहाँ से भगा दिया, ‘बेईमान, सोने की चीज़ को तू कबाड़ बताता है|’
फेरीवाला सोचने लगा कि अगर वह ज्यादा लालच न करता तो उसी समय दस कौड़ी देकर वह कटोरा ले जाता| मुझसे अच्छा तो वह दूसरा फेरीवाला ही रहा जो दो हज़ार का माल एक हजार में ले गया|
शिक्षा: भाग्य से अधिक किसी को कुछ नही मिलता| पहले फेरीवाले के साथ ऐसा ही हुआ जब वह दस कौडियों के भाव भी वह सोने का कटोरा नही ले गया, जबकि दूसरे फेरीवाले ने समझारी दिखाई| लालची व्यक्ति को पछतावे के सिवा और कुछ हाथ नही लगता|