लक्ष्यभेद

महाभारत की कहानी है| एक बार गुरु द्रोणाचार्य ने अपने कौरव-पांडव शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही|

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उन्होंने एक शिल्पी से एक नकली गीद्ध (गृद्ध) बनवाकर उसे छिपाकर एक बड़े मैदान में खड़े पेड़ पर टंगवा दिया| उसके बाद राजकुमारों से कहा- “सब अपने-अपने धनुषों पर बाण चढ़ाकर तैयार हो जाओ| तुम्हें निशाना साधकर गीद्ध का सिर उड़ाना होगा|” सबसे पहले गुरु ने सबसे बड़े राजकुमार युधिष्ठर से पूछा- “क्या तुम पेड़ पर बैठा गीद्ध देख रहे हो?” उत्तर मिला- “जी हाँ|”

गुरु ने पूछा- “क्या तुम पेड़, मुझे और अपने भाइयों को देख रहे हो?” “हाँ, गुरुजी, सबको देख रहा हूँ|” द्रोणाचार्य खीझ उठे, बोले- “तुम हट जाओ| तुम यह लक्ष्यबेध नहीं कर सकते|” गुरु द्रोणाचार्य ने उसके बाद दुर्योधन, भीम, दुःशासन आदि सभी राजकुमारों को बुलाया| सभी से उन्होंने अपने प्रश्न दोहराए| सभी ने वे ही उत्तर दिए जो राजकुमार युधिष्ठर ने दिए थे| आचार्य ने झिड़ककर उन्हें भी हटा दिया|

अंत में अर्जुन को बुलाया| उसे भी धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर बाण लगाने को कहा और पूछा- “क्या तुम इस पेड़ को, गीद्ध को, मुझे और अपने भाइयों को देख रहे हो?” “गुरुवर! मैं उस गीद्ध के सिर को छोड़कर कुछ भी नहीं देख रहा|” “बेटा, बाण चलाओ|” कहते ही अर्जुन ने जब तीर चलाया| तब वह सीधा निशाने पर लगा| गीद्ध का सिर कटकर नीचे गिर पड़ा|

गुरु ने शिष्यों को समझाया- “उधर मत देखो, इधर-उधर ध्यान न बटाओ| अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करो, ठीक प्रयत्न करके सफलता अवश्य मिलेगी|” प्रत्येक व्यक्ति को कोई भी काम करने से पहले अपने लक्ष्य को सामने रखना चाहिए|

सब ठाठ ब