लाक्षागृह

लाक्षागृह

जिन दिनों पांडव, कौरव राजकुमारों के साथ हस्तिनापुर में रहते थे, दुर्योधन को उनका वहां रहना तनिक न सुहाता था| पांडवों को देखकर उसका रोम-रोम जल उठता परंतु वह कुछ कर नहीं पाता|

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भीम प्रायः दुर्योधन को चिढ़ाता और तंग करता जिससे वह बहुत क्रोधित हो जाता था| दूसरी ओर पांडव भाइयों में परस्पर बहुत स्नेह था|

ज्येष्ठ राजमुमार युधिष्ठिर के युवराज घोषित किये जाने पर दुर्योधन असहनीय ईर्ष्या का शिकार हो गया| उसने निश्चय किया कि वह किसी भी तरह पांडवों से छुटकारा पाएगा| उसने अपने मामा शकुनी (गांधारी के भाई) के साथ मिलकर एक योजना बनाई और दृष्टिहीन धृतराष्ट्र के सामने प्रस्ताव रखा कि पांडवों को कुछ समय के लिए कहीं भेज दिया जाए|

धृतराष्ट्र स्वयं पांडवों की लोकप्रियता सेकुछ भयभीत रहते थे| दुर्योधन के कहे अनुसार धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को अपनी माता और अनुजों सहित वारणावत जाने की सलाह दी|

“वारणावत बहुत ही सुन्दर नगरी है और वहां की प्रजा तुम सबको अपने बीच में पाकर बहुत प्रसन्न होगी,” धृतराष्ट्र ने कहा|

युधिष्ठिर तुरन्त समझ गये कि यह षड्यंत्र उन सबकी हत्या के लिए रचा जा रहा है, परन्तु वे किसी भी कारण से धृतराष्ट्र की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहते थे|

कुंती, युधिष्ठिर और उनके चारों भाइयों ने वारणावत के लिए प्रस्थान किया| इसी बीच दुर्योधन ने अपने सेवकों को बुलवाकर वारणावत में एक विशेष प्रकार के भवन के निर्माण की आज्ञा दी| इस भवन के कुछ भाग लाख,सन तथा अन्य आसानी से जलनेवाले पदार्थों से बने थे|

काका विदुर को गुप्तचरों द्वारा दुर्योधन के इस षड्यंत्र की सुचना मिल गई और उन्होंने चलने से पहले युधिष्ठिर को सचेत करते हुए कहा, “तुम सतर्क रहना, ऐसा दिखवा करना जैसे कुछ जानते ही नहीं परन्तु अपनी आंखे और कान खुले रखना| मैं कुछ लोगों की तुम्हारी सहायता के लिए भेजूँगा| वे धरती के नीचे एक लंबी सुरंग खोदेंगे जिससे कोई भी दुर्घटना होने पर तुम सब इस सुरंग द्वारा सलुशल बाहर निकल सकों|”

विदुर भेजे गए आदमी रात्रि के समय खोदते, जो कि पांडवों की सुरक्षा का मार्ग था| एक दिन विदुर ने पांडवों को संदेश भेजा, ” आज रात्रि में दुर्योधन के आदमी भवन को जलाएँगे|”

कुंती ने उस रात स्वादिष्ट भोजन बनवाया और सारे पहरेदारों को आमंत्रित किया| स्वादिष्ट, राजसिक भोजन के बाद, जब सब पहरेदार गहरी नींद में थे, पांडवों ने लाक्षागृह में स्वंय आग लगा दी और सुरंग से भवन के बाहर निकल गए|

सुबह होते ही सब तरफ हलचल फैल गई| लोग पहरेदारों के अधजले मृतक शरीरों को देखकर विलाप करने लगे| उन्हें यह भी विश्वास था कि पांडव और कुंती इस भीषण अग्नि-कांड में भष्म हो गये हैं| यह कोई नहीं जानता था कि वे सब बच निकले हैं|