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कौरव और पांडव राजकुमार

माद्री जी मृत्यु के पश्चात वन के ऋषि-मुनियों ने कुंती और पांडवों को हस्तिनापुर ले जाकर भीष्म को सौंप दिया| हस्तिनापुर एक सुन्दर प्रदेश था और पांडु-पुत्र वहां जाने के लिए उत्सुक थे|

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कुंती और उनके पांच पुत्रों के हस्तिनापुर पहुँचने पर वहां के निवासी बहुत प्रसन्न हुए| वे उनके शील और गुणों पर मुग्ध हो गये| परन्तु धृतराष्ट्र- पुत्र दुर्योधन बहुत झुझलायें| दुर्योधन ईर्ष्यालु  बालक था|

वह स्वभाव से ही उद्दंड और महत्वाकांक्षी था| धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र होने के कारण अपने आपको राज्य का उत्तराधिकारी समझता था| अपने चचेरे भाइयों को बिल्कुल पसंद न करता था| कौरव और पांडव-सभी भाई कुछ समय के लिए एकसाथ रहे| वे साथ-साथ महल के उद्यान में गेंद खेलते, धनुष-बाण से निशाना साधते, और भी कई प्रकार के खेल खेलते| भीष्म बहुत ही शक्तिशाली था और अकसर दुर्योधन के साथ नोक-झोंक हो जाती|

द्वेष में आकर दुर्योधन ने भीम को मारने का निश्चय किया| भीम खाने का बहुत शौकीन था और खाता भी था ढेर सारा| एक दिन दुर्योधन ने स्वादिष्ट भोजन में विष मिलाकर भीम को धोखे से खिला दिया| भीम मूर्क्षित हो गया| उसके मूर्क्षित हो जाने पर दुर्योधन ने उसे रस्सियों से बांधकर नदी में फेंक दिया| वह नदी साँपों से भरी हुई थी| साँपों के काटने से भीम के शरीर का विष निकल गया और भीम की मुर्क्षा भंग हो गई|

नागो के राजा ने जब भीम के बारे में सुना तो उसे अपने पास बुला भेजा| भीम का डील-डौल देखकर नागराज बहुत प्रसन्न हुए| उन्होंने भीम से कहा, “मेरे साथ आओ, मै तुम्हें ऐसा द्रव्य दूंगा जिसका एक-एक घूंट तुम्हें एक हजार हाथियों के समान शक्तिशली बना देगा|” भीम ने एक बाग एक करके आठ प्याले द्रव्य पि लिया| गहरी निद्रा के बाद जब भीम जागा तो पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली था|

इस बीच रानी कुंती और चारों पांडव भाई उसकी खोज में लगे थे| कुछ दे में उन्होंने देखा कि भीम सुरक्षित, सकुशल चला आ रहा है| पांडवों की खुशी का ठिकाना न रहा, पर दुर्योधन अत्यंत क्रोधित था| भीम को मारने का उसका षड्यंत्र असफल रहा और वह दांत पीसकर रह गया|