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किसान के बेटे

एक गाँव में बिरजू नामक किसान रहता था बिरजू के चार बेटे थे| बिरजू बहुत मेहनती और दूरदर्शी स्वभाव का था जबकि उसके बेटे निकम्मे कामचोर और आलसी स्वभाव के थे|

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बिरजू किसान बूढ़ा होता चला गया और उसके बेटे जवान हो गए| बिरजू के बेटे अभी भी उसी पर निर्भर थे| बिरजू को पता था कि वह बहुत जल्द मर जायेगा| अतः बिरजू चिंतित रहने लगा कि “मेरे मरने के बाद मेरे इन कामचोर बेटों का क्या होगा? ये बिना कोई काम किये कैसे अपना जीवन यापन करेंगे|

बेटों को सही मार्ग पर लाने के लिए बिरजू किसान ने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा- मैंने अपने कमाये पैसे से जो कुछ भी खरीदा है सोना-चाँदी आदि सब अपने खेतों में गाड़ दिया है| अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ शायद इसी कारण मुझे यह याद नहीं रहा कि धन किस जगह गढ़ा है? मेरी स्मरण-शक्ति भी कमजोर हो गई है|” यह कहकर किसान मर गया| अब बिरजू किसान के चारों बेटों ने सोना-चाँदी तथा पैसा ढूँढने के लिये सारा खेत खोद डाला परंतु उनके हाथ कुछ नहीं लगा| यह देखकर वे बहुत निराश हुये| एक दिन वे चारों अपने पिता के मित्र के पास गये| और उनको सारी बात सुनाई| यह सुनकर बिरजू का मित्र बहुत खुश हुआ| उसने कहा तुम्हारे पिता बहुत बुद्धिमान थे| अनाज ही तो असली सोना है| तुमने खेत तो खोद डाला अब उसमें बीज बोकर अच्छी फसल उगाओ और उस फसल को बाजार में बेच दो| इससे तुम्हें काफी मुनाफ़ा होगा| चारों ने ऐसा ही किया और परिश्रम का महत्व समझा|

शिक्षा- परिश्रम का फल अच्छा होता है|

एकता ही