एकता ही बल है

एकता ही बल है

एक कबूतरों का एक झुण्ड खाने की तलाश में बड़ी दूर उड़ता चला गया| मीलों उड़ने के बाद भी उन्हें कहीं अन्न का दाना नहीं आया| यों ही भूखे-प्यासे एक वे घने जंगल के ऊपर से गुजर रहे थे| एक नन्हा कबूतर बहुत थक गया था| उसने झुण्ड के सरदार से विनय की, “महाराज, हम कहीं थोड़ी देर के लिए सुस्ता लें|”

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कबूतरों के सरदार ने कहा, “बेटा, घबराओ नहीं| हिम्मत से काम लो| हमें कुछ न कुछ खाने को अवश्य मिलेगा|”

सरदार की बात सुनकर वह नन्हा कबूतर चुपचाप उड़ने लगा| वह इस तेजी से उड़ना भरने लगा कि थोड़ी ही देर में सबके आगे उड़ गया| एकाएक वह मुड़कर जोर से बोला, “भाईयो, जल्दी करो, जल्दी| देखो नीचे कितना सारा खाना मौजूद है|” कबूतरों ने नीचे देखा कि एक बरगद के तले चावलों के सफेद दाने बिखरे पड़े हैं|

कबूतरों के सरदार ने कहा, “आओ साथियो, आओ, छककर भोजन किया जाये|”

वे सब नीचे उतरे और चावल के दाने चुगने लगे| तभी अचानक उनके ऊपर एक जाल गिरा और सारा झुण्ड उस  भारी जाल में फंस गया|

“अब क्या होगा?” सबने चिल्लाकर कहा, “हम सब तो जाल में फंस गये हैं|”

उसी समय उन्होंने देखा कि एक भारी-भरकम बहेलिया हाथ में मोटा डंडा लिए उनकी तरफ आ रहा है| कबूतरों के सरदार ने कहा, “बहेलिये के आने से पहले हमें तुरन्त कुछ करना चाहिए|” सब कबूतर जाल से छूटने की कोशिश करने लगे| “हम अपने को कैसे छुड़ायें? बताईये हम सब क्या करें?”

सरदार ने कहा, “भाईयो, मुझे एक उपाय सूझा है| आओ, हम सब मिलकर जोर लगायें, और जाल लेकर उड़ चलें| इस समय ताकत ही हमारा बल और आशा है|”

यह सुनकर सब कबूतरों ने अपनी चोंच से जाल के एक-एक हिस्से को पकड़ा और एक साथ जोर लगाकर उड़ चले| ठीक उसी समय बहेलिया भी वहां आ पहुंचा और यों जाल को हवा में उड़ता देख चाकर गया| अपनी आजादी के लिए कबूतरों में इस एकता को देखकर वह चकित रह गया| फिर भी वह इस आशा से उनके पीछे भागा कि शायद कुछ देर में वह भारी जाल कबूतरों के साथ नीचे गिर पड़े| कबूतरों ने बहेलिये को पीछा करते देखा| वे पहाडियों और घाटियों के ऊपर से उड़ने लगे| बहेलिया उनका पीछा नहीं कर सका और थोड़ी देर में निराश होकर वापस लौट आया|

जब बहेलिये ने कबूतरों का पीछा करना छोड़ दिया तब उनके सरदार ने कहा, “मित्रो, हमारा आधा खतरा तल गया है| अब मेरी राय में हम सब उस पहाड़ी पर चलें जो मन्दिरों की नगरी के पास है| वहां मेरा मित्र एक चूहा रहता है| वह अपने पैने दांतों से हमारे जाल को काटकर हमें आजाद करा देगा|”

इस पर सब कबूतर खुश होकर, “हां चलो, हम सब वहीँ चलें,” का शोर मचाते हुए फिर उड़े और कुछ ही देर में जहां वह चूहा रहता था उस स्थान पर जा पहुंचे|

जब कबूतरों का पूरा झुण्ड चूहे के बिल के पास उतरा तो उनके पंखो की फड़फड़ाहट सुनकर चूहा डर गया और अपने बिल में जा छिपा| कबूतरों के सरदार ने उसे बड़े प्यार से पुकारकर कहा कि हम तुम्हारे पास सहायता के लिए आये हैं|

सरदार की आवाज सुनकर चूहे ने बिल से झांका और अपने मित्र को देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ|

कबूतरों के सरदार ने कहा, “भाई, हम एक बहेलिये के जाल में फंस गये, लेकिन जब हमने उसे आते देखा तो हम जाल समेत उड़ भागे| अब तुम कृपाकर हमें इस जाल से छुड़ाओ|”

“अभी लो,” चूहे ने कहा, “मै अभी सबके बंधन काटे देता हूं|” ऐसा कहकर वह सबसे पहले कबूतरों के सरदार के बंधन काटने लगा|

सरदार ने कहा, “नहीं मित्रो, नहीं, तुम पहले मेरे साथियों को स्वतंत्र करो|”

नन्हा चूहा था बुद्धिमान| वह झुण्ड के प्रति सरदार की भावनाओं को अच्छी तरह समझता था| उसने थोड़ी ही देर में एक-एक कर सब कबूतरों के बंधन काट डाले और फिर अन्त में सरदार को भी स्वतंत्र कर दिया|

कबूतरों ने अपने प्राण बचाने वाले नन्हे चूहे को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया| इसके बाद सब कबूतर नीले आसमान में फिर से उड़ गये|