खरी कमाई

एक बड़े सदाचारी और विद्वान ब्राह्मण थे| उनके घर में प्रायः रोटी-कपड़े की तंगी रहती थी| साधारण निर्वाहमात्र होता था| वहाँ के राजा बड़े धर्मात्मा थे| ब्राह्मणी ने अपने पति से कई बार कहा कि आप एक बार तो राजा से मिल आओ, पर ब्राह्मण कहते हैं कि वहाँ जाने के लिए मेरा मन नहीं कहती|

“खरी कमाई” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

वहाँ जाकर आप माँगो कुछ नहीं, केवल एक बार जाकर आ जाओ|

ज्यादा कहा तो स्त्री की प्रसन्नता के लिए वे राजा के पास चले गये| राजा ने उनको बड़े त्याग से रहने वाले गृहस्थ ब्राह्मण जानकर उनका बड़ा आदर-सत्कार किया और उनसे कहा कि आप एक दिन और पधारें| अभी तो आप मर्जी से आये हैं, एक दिन आप मेरे पर कृपा करके मेरी मर्जी से पधारें| ऐसा कहकर राजा ने उनकी पूजा करके आनंदपूर्वक उनको विदा कर दिया| घर आने पर ब्राह्मणी ने पूछा कि राजा ने क्या दिया? ब्राह्मण बोले- दिया क्या, उन्होंने कहा कि एक दिन आप फिर आओ| ब्राह्मणी ने सोचा कि अब माल मिलेगा| राजा ने निमन्त्रण दिया है, इसलिए अब जरुर कुछ देंगे|

एक दिन राजा रात्रि में अपना वेश बदलकर, बहुत गरीब आदमी के कपड़े पहनकर घूमने लगे| ठंडी के दिन थे| एक लुहार के यहाँ एक कड़ाह बन रहा था| उसमें घन मारने वाले आदमी की जरूरत थीं| राजा इस काम के लिए तैयार हो गये| लुहार ने कहा की एक घंटा काम करने के दो पैसे दिये जायँगे| राजा ने बड़े उत्साह से, बड़ी तत्परता से दो घंटे काम किया| राजा के हाथों में छाले पड़ गये, पसीना आ गया, बड़ी मेहनत पड़ी| लुहार ने चार पैसे दे दिये| राजा उन चार पैसों को लेकर आ गया और आकर हाथों पर पट्टी बाँधी| धीरे-धीरे हाथों में पड़े छाले ठीक हो गये|

एक दिन ब्राह्मणी के कहने पर वे ब्राह्मण देवता राजा के यहाँ फिर पधारे| राजा ने उनका बड़ा आदर किया, आसन दिया, पूजन किया और उनको वे चार पैसे भेंट दे दिये| ब्राह्मण बड़े संतोषी थे| वे उन चार पैसों को लेकर घर पहुँचे| ब्राह्मणी सोच रही थी कि आज खूब माल मिलेगा| जब उसने चार पैसों को देखा तो कहा कि राजा ने क्या दिया और क्या आपने लिया! आप-जैसे पण्डित ब्राह्मण और देने वाला राजा! ब्राह्मणी ने चार पैसे बाहर फेंक दिये| जब सुबह उठकर देखा तो वहाँ चार जगह सोने की सीकें दिखाई दीं| सच्चा धन उग जाता है| सोने की उन सीकों की वे रोजाना काटते पर दूसरे दिन वे पुनः उग आतीं| उनको खोदकर देखा तो मूल में वे ही चार पैसे मिले!

राजा ने ब्राह्मण को अन्न नहीं दिया; क्योंकि राजा का अन्न शुद्ध नहीं होता, खराब पैसों का होता है| मदिरा आदि पर लगे टैक्स के पैसे होते हैं, चोरों को दंड देने से प्राप्त हुए पैसे होते हैं-ऐसे पैसों को देकर ब्राह्मण को भ्रष्ट नहीं करना है| इसलिये राजा ने अपनी खरी कमाई के पैसे दिये| आप भी धार्मिक अनुष्ठान आदि में अपनी खरी कमाई का धन खर्च करो|