खरगोश और कछुआ
एक वन में खरगोश और कछुआ रहते थे| दोनों गहरे मित्र थे| एक दिन वे सैर के लिए निकले| खरगोश तेज चलता और कछुआ धीरे-धीरे| खरगोश को कछुए की चाल पर हँसी आ गई| वह बोला, क्या तुम बीमार हो जो चींटी की चाल चल रहे हो| आओ मेरे साथ दौड़ का मुकाबला करो|
“खरगोश और कछुआ” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
कछुआ बेचारा चुप रहा| खरगोश ने फिर ताना मारा| कछुए ने कहा मुझे तुम्हारी चुनौती स्वीकार है| कल दोपहर को दौड़ेंगे|
अगले दिन कछुआ और खरगोश दोनों इकट्ठे हुए| दोपहर का समय था| धूप में तेजी थी दोनों दौड़ने के लिए तैयार हो गए| एक किलोमीटर दूर वृक्ष को छूने का लक्ष्य रखा| खरगोश शुरु में खूब तेज दौड़ा और कछुआ पीछे रह गया| गर्मी से व्याकुल खरगोश एक वट वृक्ष के नीचे घनी छाया में रुक गया| उसने सोचा कछुए को यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा| यह सोचकर वह पेड़ की घनी छाया में लेट गया| पेड़ की शीतल छाया में उसे नींद आ गई| परंतु कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ वहाँ पहुँच गया| उसने खरगोश को सोते हुए देखा|
कछुआ बिना रुके चलता रहा और अपने लक्ष्य पर पहुँच गया| उधर एक घंटे बाद खरगोश की नींद खुली| वह घबरा गया और दौड़ने लगा| कुछ ही क्षणों में वह जब लक्ष्य पर पहुँचा तो उसने मुस्कुराते हुए कछुए को देखा| कछुआ बोला- “क्यों मित्र| क्या हुआ? कौन जीता? अपनी तेज चाल पर बहुत उछलते थे न!” खरगोश बहुत लज्जित हुआ| क्या उत्तर देता?
शिक्षा- आराम हराम है|