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जंगल का पुत्र

राजगढ़ के राजा शक्ति सिंह की दो रानियाँ थी- प्रेमलता और सुमनलता| दोनों सगी बहनें थी| कुछ समय बाद प्रेमलता ने एक पुत्र को जन्म दिया| प्रेमलता द्वारा पुत्र को जन्म देने के बाद सुमनलता मन-ही-मन उससे जल उठी| उसे लगा कि अब महाराज की नजरों में उसका महत्व समाप्त हो जाएगा| वह यह चाहती थी कि भविष्य में उसका होने वाला पुत्र ही राजा बने|

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प्रेमलता ने जिस पुत्र को जन्म दिया था उसके माथे पर एक लाल निशान था| सुमनलता ने उस बच्चे को रास्ते से हटाने की योजना बनाई| वह राजज्योतिषी से मिली और उसे लालच देकर अपनी योजना बताई|

वह ज्योतिषी योजनानुसार राजा के पास गया और बोला, ‘महाराज! आपका यह पुत्र आपके लिए भाग्यशाली नही, एक खतरा है जो बड़ा होकर हम सब के विनाश का कारण बनेगा|’

राजा ज्योतिषी की बातों में आ गया और उस बच्चे को जंगल में छोड़ आने का आदेश दिया| सैनिक उस बच्चे को जंगल में एक शेर की गुफ़ा के बाहर छोड़ आए|

कुछ देर बाद उस गुफ़ा से शेर के दो छोटे-छोटे बच्चे निकले और उस बच्चे के साथ खेलने लगे| इतने में वहाँ शेरनी भी आ गई| शेरनी ने जब अपने बच्चों को मानव बच्चे के साथ खेलते देखा तो स्वभाववश उसे भी उस मानव बालक पर दया आ गई| वह उस बच्चे को अपना दूध पिलाकर पालने लगी|

अब वह बालक जंगल में शेरनी के साथ ही पल रहा था| एक दिन अन्य नगर का राजा सुमेर सिंह जंगल में शिकार खेलने आया| उसने उस शेरनी को देखा तो उस पर तीर चला दिया| शेरनी घायल होकर अपनी गुफ़ा की तरफ़ भागी|

सुमेर सिंह भी उस घायल शेरनी के पीछे भागा| वहाँ पहुँचकर देखा कि शेरनी मरी पड़ी है और पास ही दो शेर के बच्चे तथा एक मानव बालक रो रहे है| तब उसे अपनी गलती पर पश्चाताप हुआ| वह शेर के बच्चों तथा मानव बच्चे को अपने साथ में महल में ले आया|

मानव बच्चे को उसने अपना पुत्र स्वीकार कर उसका नाम नवल किशोर रखा|

समय के साथ-साथ शेर के बच्चे तथा राजकुमार नवल किशोर बड़े हो गए| सुमेर सिंह ने शेर के बच्चों को जंगल भिजवा दिया| अब वह हट्टे-कट्टे शेर बन चुके थे| नवल किशोर भी बीच-बीच में जंगल जाता रहता और अपने शेर भाइयों से मिलता रहा|

एक दिन नवल किशोर जंगल में आया हुआ था| उसी समय उसका जन्मदाता पिता शक्ति सिंह भी जंगल में शिकार खेलने आया| अचानक ही शेरों ने शक्ति सिंह पर हमला कर दिया| तभी नवल किशोर की नज़र उन पर पड़ गई और उसने दोनों शेरों को रोक दिया|

शेरों ने नवल किशोर की बात मान ली और शक्ति सिंह को छोड़ दिया| शक्ति सिंह ने जब नवल किशोर को देखा तो चौंक पड़ा| उसके माथे पर वैसा ही लाल निशान था, जैसा उसके पुत्र के माथे पर था| राजा ने उस नवयुवक से पूछा, ‘तुम कौन हो और तुम्हारे माता-पिता कहाँ है?’

‘मै जंगल का पुत्र हूँ| मेरी माता शेरनी की मृत्यु हो चुकी है, पिता को नही जानता लेकिन पालनहार पिता राजा सुमेर सिंह है|’ नवल किशोर ने कहा|

राजा शक्ति सिंह समझ गया कि वह उसी का पुत्र है| उसके कानों में राजज्योतिषी के वही शब्द गूंज रहे थे कि यह बालक अशुभ है और उसके विनाश का कारण बनेगा जबकि आज उसी बालक ने उसकी जान बचाई|

राजा शक्ति सिंह महल में पहुँचा और राजज्योतिषी को बुलाकर उससे सख्ती से सच्चाई के बारे में पूछा| तब उसने बताया कि छोटी रानी सुमनलता के कहने पर उसने यह सब किया था|

राजा ने राज ज्योतिषी और छोटी रानी को कारागार में डाल दिया|

राजा को भी उसके किए की सजा मिल गई थी| उसके बाद उसे दूसरी कोई संतान नही हुई|

राजा शक्तिसिंह पड़ोसी राजा सुमेर सिंह के दरबार में आया और उनको सारी व्यथा सुनाते हुए उनसे अपना पुत्र माँगा| सुमेर सिंह को भी कोई संतान नही थी इसलिए नवल किशोर ही उसका इकलौता वारिस था| वह भी वहाँ उपस्थित था|

दोनों राजाओं ने संधि कर ली और तय हुआ कि भविष्य में दोनों राज्य एक हो जाएँगे और नवल किशोर ही उसका राजा होगा|


कथा-सार 

किसी की कही बातों पर अमल करने से पहले उसके परिणामों के विषय में सोच लेना चाहिए| मात्र किसी के बहकावे में आकर कोई ऐसा कदम नही उठाना चाहिए, जिससे बाद में पछताना पड़े|