जीने का रास्ता
किसी गांव के पास एक सांप रहता था| वह बड़ा ही तेज था| जो भी उधर से निकलता, वह उस पर दौड़ पड़ता और उसकी जान ले लेता| सारे गांव के लोग उससे तंग आ गए| वे उसे रात-दिन कोसते| आखिरकार उन्होंने उस मार्ग से निकलना ही छोड़ दिया| गांव का वह हिस्सा उजाड़-सा हो गया|
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एक दिन एक साधु उस गांव में आए| लोगों ने उस सांप के उत्पात की बात उन्हें सुनाई|
गांव वालों की बात सुनकर साधु सांप के पास गए और उसे समझाते हुए कहा – “यह जन्म बार-बार नहीं मिलता| ऐसा जीना किस काम का कि लोग गालियां दें|”
सांप ने पूछा – “मैं क्या करूं?”
साधु बोले – “तुम हमला करना छोड़ दो| सबके साथ प्यार का व्यवहार करो|”
सांप ने उनकी बात मान ली|
उस दिन से वह खुले मैदान में चुपचाप पड़ा रहता| लोगों को यह मालूम हुआ तो उनका डर धीरे-धीरे दूर हो गया और वे इधर से बेधड़क आने-जाने लगे| अब गांव के बच्चे वहां इकट्ठे हो जाते और उसके ऊपर ईंट-पत्थर मारते, उसके बदन में लकड़ी चुभोते| बेचारा सांप सब कुछ सहन कर लेता| संयोग से एक दिन वही साधु वहां आए| उसकी बुरी हालत देखकर वह चकित रह गए| उन्होंने पूछा – “अरे, तुम्हें यह क्या हो गया?”
सांप ने सारा हाल कह सुनाया| सुनकर साधु बोले – “भाई मैंने तुझे काटने से रोका था, लेकिन फुककारने से तो मना नहीं किया| जो अपने तेज को प्रकट नहीं करता, उसे कोई जीने नहीं देता है|”
सांप ने अब असली बात समझी| उस दिन से उसने फुककारने शुरू कर दिया| उसकी फुककार सुनते ही बच्चे दूर भाग जाते| अब उन्होंने उसे सताना छोड़ दिया| सांप काटना पहले ही छोड़ चुका था इसलिए लोगों ने उससे डरना भी बंद कर दिया था| अब वे चैन से रहने लगे|