झोपड़ी में रह जनसेवा का संदेश दिया चाणक्य ने
एक बार यूनान का राजदूत भारत आया। उसने मौर्य साम्राज्य के महामंत्री चाणक्य की प्रशंसा प्रत्येक व्यक्ति के मुख से सुनी। वह चाणक्य से मिलने के लिए उत्सुक हो उठा। राजदूत चाणक्य से मिलने उनके निवास स्थान गंगा के किनारे चल दिया।
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वहां पहुंचकर उसने देखा कि गंगा के तट पर ऊंचा, लंबा, दृढ़ व्यक्तित्व का धनी एक पुरुष नहा रहा था। जब वह नहाकर अपने वस्त्र धोने लगा तो राजदूत ने उसके पास जाकर पूछा- महाशय! मैं महामंत्री चाणक्य से मिलना चाहता हूं। कृपया आप बता सकेंगे कि वे कहां रहते हैं? उस व्यक्ति ने एक झोपड़ी की ओर संकेत किया।
राजदूत को विश्वास ही नहीं हुआ कि एक महामंत्री इस साधारण-सी झोपड़ी में रहता है। वह झोपड़ी के द्वार पर पहुंचा तो देखा कि भीतर कोई नहीं है। यह सब देखकर राजदूत को लगा कि गंगा किनारे मिले व्यक्ति ने उसके साथ परिहास किया है। वह मुड़ने लगा तो वही व्यक्ति सामने खड़ा था। उसे देखकर राजदूत ने कहा- तुमने तो कहा था कि महामंत्री चाणक्य यहां रहते हैं, लेकिन यहां तो कोई नहीं है। वह व्यक्ति बोला- आपका स्वागत है। मैं ही चाणक्य हूं।
राजदूत ने आश्चर्य से कहा- मौर्य साम्राज्य के महामंत्री इस झोपड़ी में? तब चाणक्य बोले- हमारा कार्य प्रजा की सेवा करना है। यदि मैं महलों व सुविधाओं के बीच रहने लगा तो प्रजा के हिस्से में झोपड़ी आ जाएगी। प्रजा सुखी रहे, इसलिए मैं झोपड़ी में रहता हूं। वस्तुत: सुविधा-भोग ही जिसका लक्ष्य न हो बल्कि सुविधाएं जन-जन को सुलभ कराने की हार्दिक उत्कटता जिसमें हो, वही सच्चे अर्थो में बड़ा और महान है।