जंगल का राक्षस (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर को बीरबल से मजाक करने की सूझी| उन्होंने एक दांता बनवाया और उसे इस तरह का रूप दिया कि पता न चले कि वह दांता है, और जो भी उसमें हाथ डाले उसका हाथ फंस जाए| बादशाह ने उसमें एक सेब रख दिया|
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जब बीरबल आया तो उन्होंने वह सेब उससे मंगवाया| बीरबल ने जैसे ही सेब की तरफ हाथ बढ़ाया उसका हाथ उस दांते में फंस गया| बादशाह अकबर जोर-जोर से हंसने लगे| बीरबल समझ गया कि यह बादशाह की चालाकी है|
बादशाह ने बीरबल के हाथ को दांते से छुड़ाते हुए कहा – “कहो बीरबल कैसी रही?”
बीरबल चुप रहा किंतु मन-ही-मन बादशाह को इसका जवाब देने का पक्का इरादा कर लिया|
बीरबल ने दरबार से कुछ दिन की छुट्टी ले ली और घर पर ही रहने लगा, पर वे दरबार की सारी खबर रखता था|
एक दिन बादशाह अकबर शिकार खेलने निकले| बीरबल भी साधु के भेष में उनके पीछे-पीछे हो लिया| कुछ देर बाद एक शिकार का पीछा करते-करते बादशाह घने जंगल में निकल आए| उनके सभी साथी पीछे छूट गए थे|
शाम भी घिर आई थी| अकेला होने के कारण बादशाह को कुछ डर भी लग रहा था| फिर भी वे रास्ता खोजते हुए चले जा रहे थे| तभी अचानक भयंकर अट्टहास की आवाज सुनाई दी|
“क…क…कौन है?” बादशाह अकबर ने डरकर पूछा|
“मैं इस जंगल का राक्षस हूं, और तुम्हारी खबर लेने आया हूं|”
“मेरा क्या कसूर है?” बादशाह ने डरते हुए पूछा|
“तू यहां का शासक होकर प्रजा पर जुल्म करता है, इसकी सजा तुझे जरूर मिलेगी|”
“मुझे इस बार माफ कर दो, अगली बार आपको शिकायत नहीं मिलेगी|”
“माफी मिल सकती है, अगर तू मेरा जूता अपने सिर पर रखकर चलेगा|”
“मुझे मंजूर है, आप जूते दे दें|”
तभी बादशाह के सामने एक जोड़ी जूते आकर गिर पड़े, बादशाह ने उन जूतों को उठाया और सिर पर रखकर चल दिए| जंगल से बाहर निकलकर बादशाह ने उन जूतों को फेंका और बिना पीछे देखे महल की तरफ दौड़ पड़े| जैसे-तैसे वे महल में पहुंचे, तब कहीं जाकर जान में जान आई|
अगले दिन जब दरबार लगा तो बीरबल भी दरबार में उपस्थित था| बीरबल को देखकर बादशाह को फिर मजाक सूझा, उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से बोले – “कहो बीरबल, दांते का सेब मिला?”
“हुजूर, जंगल के राक्षस ने क्या कहा?” बीरबल ने जवाब दिया|
यह सुनकर बादशाह अकबर झेंप गए| वे समझ गए की जंगल की घटना बीरबल की बुद्धि का ही कारनामा था|