जैसे को तैसा (बादशाह अकबर और बीरबल)
श्यामदस बहुत ही निर्धन व्यक्ति था| एक बार उसे स्वप्न आया की उसने अपने मित्र रामदास से सौ रुपये उधार लिए हैं| प्रात: जब वह उठा तो उसे इस स्वप्न का फल जानने की इच्छा हुई, उसने कई लोगों से स्वप्न की चर्चा कि|
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इसी तरह यह बात फैलकर रामदास के कानों तक भी जा पहुंची| सुनकर रामदास के मन में लालच जाग उठा| वह श्यामदास के यहां पहुंच गया और अपने सौ रुपये की मांग करने लगा|
“सौ रुपये, किंतु वह तो मैंने स्वप्न में लिए थे|” श्यामदास ने हैरानी से कहा|
“तुमने चाहे जैसे भी लिए हों, अब लौटाने तो पड़ेंगे| मेरे पास कई गवाह हैं जिसके सामने तुमने स्वयं कर्जा लेना स्वीकार किया है, सीधी तरह से रुपये लौटा दो वरना मुझे दरबार में जाना पड़ेगा|” रामदास ने धमकी देते हुए कहा|
गरीब श्यामदास भला रामदास को सौ रुपये कहां से देता, अत: बात दरबार तक पहुंच गई| रामदास ने पूरी तैयारी के साथ श्यामदास पर मुकदमा किया था| सभी गवाह और सबूत श्यामदास के खिलाफ थे|
बादशाह अकबर ने न्याय के लिए बीरबल को आगे कर दिया| बीरबल ने दोनों पक्षों की बात गौर से सुनी, फिर एक सेवक को हुक्म देकर शाही खजाने से सौ रुपये तथा एक दर्पण मंगवाया| सेवक दोनों चीजें ले आया तो बीरबल ने सौ रुपये दर्पण के सामने रखे और दपर्ण में दिखने वाले रुपये की तरफ इशारा करके बोला – “जाओ, जो रुपये तुम्हें दर्पण में दिख रहे हैं, उठ लो|”
“हुजूर, दर्पण में तो रुपयों का प्रतिबिंब है, उसे कैसे उठाया जा सकता है?” रामदास ने कहा|
“क्यों स्वप्न भी तो प्रतिबिंब होता है, जब उससे रुपये दिए जा सकते हैं तो लिए क्यों नहीं जा सकते?” बीरबल ने कहा|
रामदास चुप रहा|
बीरबल ने श्यामदास को बाइज्जत बरी कर दिया और रामदास पर झूठा मुकदमा चलाने तथा दरबार का समय व्यर्थ करने के कारण जुर्माना लगा दिया|
बीरबल के न्याय से बेहद प्रसन्न हुए बादशाह अकबर|