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जब उन्हें नींद नहीं आई

जब उन्हें नींद नहीं आई

भारत के संत स्वामी विवेकानंद ‘विश्व धर्म’ सम्मेलन में भाग लेने अमेरिका पहुँचे| वह सादे वस्त्रों में एकाकी एक बगीचे में बैठे थे कि एक भद्र अमेरिकी महिला उनके पास पहुँची| वह थोड़ी ही बातचीत से प्रभावित हो उठी|

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और उसे यह अनुभव हो गया कि यह वास्तव में भारत के एक विद्वान सन्यासी हैं| अपने पति से सलाह कर वह उन्हें भव्य स्थल में ले गई| और उनके खाने-पीने एवं निवास की समुचित व्यवस्था कर दी| कुछ ही दिनों में अपनी विद्वतापूर्ण भाषणों के कारण स्वामी जी देशभर में विख्यात हो गए|

एक दिन रात के दो बजे उस अमेरिकी महिला की नींद खुल गई| उसे स्वामी जी के कमरे से रोने की आवाज सुनाई दी| कमरे की खुली खिड़की से जब झाँका, तब उसने देखा कि स्वामी जी नंगे फर्श पर लेटे हुए रो रहे थे| महिला ने पूछा- “स्वामी जी, आपके रोने का क्या कारण है? आपको क्या कष्ट है? आप मखमली बिस्तर छोड़कर नंगे फर्श पर ठंड से क्यों ठिठुर रहे हैं?”

स्वामी जी ने जवाब दिया- “यहाँ मुझे पूरा आराम है, पर ये रेशमी गद्दे और ऊनी कपड़े मेरा उपहास कर रहे हैं| मुझे अपने गरीब देश के करोड़ों निर्धन-नंगे देशवासी नहीं भूलते| वह देश के लिए अनाज पैदा करते हैं, पर उन्हें खुद खाने को एक दाना अनाज महस्सुर नहीं; वे ठंडी रातों में ईट का सिराहना लगाकर कठोर जमीन पर सो जाते हैं| उन्हीं देशवासियों की याद में मुझे इन रेशमी गद्दों पर नींद नहीं आई| मुझे यह अफसोस है कि मेरे कारण आपकी नींद खराब हो गई|” इस कहानी से हमें पता चलता है कि महान व्यक्ति वही होते हैं जो दूसरों के दुःख पर आँसू बहाते हैं|