जब औरंगजेब दुर्गादास के प्रति श्रद्धा से भर गया
जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद बादशाह औरंगजेब जोधपुर को हड़पना चाहता था लेकिन जसवंत सिंह के मंत्री दुर्गादास राठौर ने औरंगजेब की कोई भी चाल कामयाब नहीं होने दी। जसवंत सिंह के पुत्र राजकुमार अजीत सिंह को जोधपुर की गद्दी पर बिठाने के लिए दुर्गादास ने मुगल सेना से डटकर युद्ध किया। दुर्गादास ने भी कभी हार नहीं मानी।
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युद्ध के दौरान वे घोड़े की पीठ पर बैठकर ही खाना खा लेते, उसकी पीठ पर बैठकर सो लेते और लगातार युद्ध करते रहते। अपनी सभी इच्छाएं और सुख उन्होंने जोधपुर की रक्षा की खातिर बलिदान कर दिए थे। उनके लिए देश और मानव धर्म ही सर्वोपरि था। एक बार युद्ध में औरंगजेब के पोता-पोती दुर्गादास के हाथ लग गए, लेकिन दुर्गादास ने उन्हें बड़े सम्मान के साथ अपने यहां रखा। कुछ समय बाद औरंगजेब ने संदेश भेजकर दोनों को वापस मांगा तो दुर्गादास ने शर्त रखी कि बादशाह जोधपुर के सिंहासन पर अजीत सिंह का अधिकार स्वीकार कर लें। बादशाह ने शर्त मान ली।
जब औरंगजेब के पोता-पोती दिल्ली लौटे तो उसने उनसे कहा- तुम लोग विधर्मी के घर रहकर आए हो, अत: कुरान का पाठ किया करो। पोती बोली- हम लोग तो वहां भी रोज कुरान पढ़ते थे। दुर्गादास ने हमारे लिए एक मुस्लिम महिला रखी थी, जो हमें कुरान का पाठ कराती थी। औरंगजेब दुर्गादास के प्रति श्रद्धावनत होकर बोला- सुभान अल्लाह! दुश्मन भी हो तो अच्छा इंसान हो।
सार यह है कि शत्रुता को निजता के सम्मान में बाधक नहीं बनने दें और एक व्यापक दृष्टिकोण रखते हुए अच्छाइयों की शक्ति को एकत्रित करें।