इंसाफ (बादशाह अकबर और बीरबल)
बीरबल से बहुत भारी भूल हो गई| दरबारियों से सलाह लेते हुए बादशाह अकबर ने पूछा – “बीरबल को इस किए की क्या सजा दी जाए?”
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दरबारियों के कुछ कहने से पहले ही बीरबल बोल पड़ा – “हुजूर! आपने मुझसे वादा किया था कि कभी मुझसे गलती हुई तो अपनी सजा मैं ही तय करूंगा| इसलिए इनकी राय पर न चलें|”
“हां, हमें याद आ गया|” बादशाह अकबर बोले – “ठीक है, अपनी सजा खुद ही तय करो|”
बीरबल ने इंसाफ के लिए पंचों को चुना|
इस चुनाव से बादशाह ही क्या सारे दरबारियों को बड़ा आश्चर्य हुआ| वे सोचने लगे, पंच क्या इंसाफ करेंगे? उनके हिसाब से किसी महाजन को चुनना था|
पांच गांवों के पांच चौधरी आ गए|
पंच पहले ही बीरबल से खार खाए बैठे थे| उन्हें लगा यह अच्छा मौका हाथ लगा है| एक पंच ने कहा – “हुजूर, बीरबल का अपराध बहुत बड़ा है, अत: बीरबल की सारी जायदाद कुर्क कर लेनी चाहिए|”
दूसरे पंच को इतना बड़ा जुर्मानाकुबूल नहीं हुआ| उसने सोचा इससे तो बीरबल का घर-बार सब तबाह हो जाएगा| उसने कुछ सोचा और आधी जायदाद कुर्क करने को कहा| इस प्रकार तीसरे, फिर चौथे पंच ने जुर्माना तीन बीसी (लगभग 60 रुपये) का कर दिया|
चौथे पंच का पांचवें ने भी अनुमोदन किया और दोनों कुछ देर तक विचार-विमर्श करते रहे और दो बीसी का जुर्माना अदा करने को कहा| साथ ही उन्होंने बादशाह से फरियाद की किजुर्माना बहुत अधिक है, इसलिए इसकी वसूली में सख्ती न बरती जाए| यह फैसला करके वहां से कूच कर गए|
बादशाह अकबर समझ गए कि क्यों बीरबल ने इन पंचों को सजा दिलाने के लिए चुना था| बादशाह की नजरों में दो बीसी का जुर्माना भला क्या अहमियत रखता था| उन्होंने बीरबल की तरफ सवालिया नजरों से देखा|
बीरबल ने कहा – “हुजूर, ये गरीबों के पंच थे| इन्हें पता था कि एक गरीब आदमी वर्षभर में एक बीसी भी नहीं बचा पाता| इसलिए उन्होंने अपनी तरफ से दो बीसी की सजा को भी बहुत बड़ी सजा समझा|”
बीरबल की इस चतुराई पर अकबर बादशाह आश्चर्यचकित रह गए|