हाज़िरजवाबी

श्री जार्ज बनार्ड शा अंग्रेजी भाषा के विख्यात लेखक एवं शिरोमणी नाटककार थे| कहते हैं कि वह जिस तरह अच्छा लिखते थे|

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उसी तरह वह हाज़िरजवाबी में भी बड़े माहिर थे| वाणी और लेखनी के बावजूद प्रकृति ने उन्हें रुप देने में बड़ी कंजूसी बरती थी| वह बहुत ही कुरुप थे| एक दिन जार्ज बनार्ड शा के पास एक बहुत ही रुपवती और धनवती अमेरिकी महिला आई| उसने इस प्रतिभा-संपन्न कुँवारे नाटककार से प्रस्ताव किया- “बड़ा अच्छा हो यदि हम दोनों विवाह कर ले| हमारे वैवाहिक संबंध से ऐसी संतान हो सकती है जो रुप-रंग में तो मेरी प्रतिमूर्ति हो और प्रतिभा-चतुराई में आप जैसी|”

नाटककार जार्ज बनार्ड शा एक क्षण सहमे| फिर अपनी गंभीरता कायम रखते हुए बोल उठे-

“मैडम, यदि कुदरत ने तुम्हारी तकदीर के खिलाफ खेल किया तो क्या होगा?” वह रूपसी बोली- “वह कैसे?” बनार्ड शा ने उत्तर दिया- “देवी जी, वह ऐसे कि कही कुदरत का सारा खेल पलट गया तो क्या होगा? यदि उस संतान को मेरा रंग-रुप मिल गया और अक्ल तुम्हारी तो फिर क्या होगा?”

नहले पर दहले जैसा यह जवाब सुनाते ही वह धनवती रुपसी उल्टे पाँव लौट गई| सही वक्त पर सही जवाब देना ज्यादा अच्छा होता है|