घोड़ा और गधा

एक घोबी था| उसके पास एक घोड़ा और एक गधा था| एक दिन वह दोनों को बाज़ार लेकर जा रहा था| उस दिन धूप बहुत तेज़ थी| घोबी ने गधे की पीठ पर कपड़ों के बड़े-बड़े गट्ठर लाद रखे थे, जबकि घोड़े की पीठ पर कुछ नही था|

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गधा बोझ के भार से इतना दुखी था कि उससे चला भी नही जा रहा था| वह घोड़े से बोला, ‘मित्र! मैं बोझ से मर जा रहा हूँ, थोड़ा बोझ तुम भी अपनी पीठ पर ले लो|’

घोड़ा बोला, ‘अरे वाह! मैं भला क्यों तुम्हारा बोझ लादूँ| यह बोझ तुम्हारा है और तुम्हें ही इसे ढोना पड़ेगा| हम तो शाही सवारी है, यह काम हमारा थोड़े ही है|’

घोड़े की बात सुनकर बेचारा गधा चुप हो गया| लेकिन थोड़ी देर बाद बोझ की अधिकता के कारण गधे के पैर लड़खड़ाने लगे और वह बीच रास्ते में गिर पड़ा| प्यासा होने के कारण उसकी आँखें बाहर निकल आई|

धोबी ने जब गधे की यह दुर्दशा देखी तो उसे अपनी भूल का अहसास हुआ| उसने गधे को पानी पिलाया और उसकी पीठ का सारा बोझ घोड़े की पीठ पर लाद दिया|

सचमुच बोझ बहुत अधिक था| बोझ के कारण घोड़े के पैर भी लड़खड़ाने लगे| घोड़ा सोचने लगा, ‘अगर मैंने गधे की बात मानकर उसका कुछ भार पहले ही अपनी पीठ पर ले लिया होता तो यह नौबत ही नही आती| अब तो मुझे ही सारा बोझ लादकर बाज़ार तक जाना होगा|’


कथा-सार

पहली भूल तो गधे और घोड़े के मालिक ने की कि सारा बोझ गधे पर ही लाद दिया| दूसरी भूल घोड़े ने की और गधे का बोझ लादने से इंकार कर दिया| घोड़ा भूल गया था कि दुख बाँटने से हल्का होता है और सुख बाँटने पर बढ़ता है| घोड़े को अपने मिथ्या अभिमान की कीमत चुकानी पड़ी क्योंकि बाद में सारा बोझ उसकी ही पीठ पर आ पड़ा|

नदी रो क