गधे से मनुष्य बनाना
एक वैद्य था| वह अपने साथ एक आदमी को रखता था| एक दिन वे एक गाँव से रवाना हुए तो किसी बात को लेकर वैद्य ने उस आदमी की ताड़ना की-‘अरे, तू जानता नहीं, पहले तू कैसा था? तू तो गधा था|
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मैंने तेरे को गधे से मनुष्य बनाया! मैंने तेरा उपकार किया, फिर भी तू मेरी बात नहीं!’ पास में ही एक गधेवाला जा रहा था|
उसने वैद्य की बात सुन ली कि यह गधे से मनुष्य बनाता है| वह वैद्य के पास आया और बोला कि ‘महाराज! यों तो मेरे पास कई गधे हैं, पर आपको दो गधे देता हूँ, मेहरबानी करके इनको आप मनुष्य बना दो|’ वैद्य बोला-‘हाँ, बना देंगे, पर इसका रुपया लगेगा भाई! एक गधे का सौ रुपया लगेगा|’ गधे वाले ने कहा- ‘ठीक है, मैं आपको अभी पूरा रुपया दे देता हूँ, आप इसको मनुष्य बना दो|’ उसने वैद्य को दो सौ रुपया दे दिये और अपने दो गधे देकर चला गया|
गधे वाला जब आकर पूछा तो वैद्य बोले कि ‘अभी तुम्हारे गधे मनुष्य बन रहे हैं| उन पर मसाला चढ़ा दिया है|’ ऐसा करते तीन-चार महीने बीत गये| अब वह गधे वाला आया तो वैद्य बोला कि ‘अरे यार! तू आया नहीं! तेरे गधे तो कब से मनुष्य बन गये और उनकी नौकरी भी लग गयी! जिस गधे के ज्यादा बाल थे, वह तो मौलवी बन गया और स्कूल में बच्चों को पढ़ता है, और दूसरा गधा स्टेशन मास्टर बन गया| मैंने दोनों को ठीक तरह से मनुष्य बना दिया| परन्तु तू देरी से आया, इसलिये मसाला ज्यादा चढ़ गया और वे नौकरी में लग गये| अब तू जाने भाई!’
गधे वाला घास लेकर स्कूल गया| वैद्य ने जिसका नाम बताया था, उस दाढ़ी वाले मौलवी के सामने जाकर वह खड़ा हो गया और घास दिखाते हुए कहने लगा-‘आ जा, आ जा! घास ले ले, ले ले!’ वह मौलवी चिल्लाया-‘अरे! यह कौन है? क्या करता है? पागल हो गया है क्या?’ गधे वाला बोला-‘मैंने सौ रूपये खर्च करके तेरे को गधे से मनुष्य बनाया है! मैं पागल कैसे हो गया?’ मौलवी ने उसको पागल कहते हए बाहर निकाल दिया| अब वह स्टेशन मास्टर के पास पहुँचा और उसको भी घास दिखाकर कहने लगा-‘आ जा, आ जा! ले ले, ले ले!’ स्टेशन मास्टर बोला-‘अरे, यह क्या करता है!’ लोगों ने बताया कि यह पाठशाला में भी गया था और मौलवी को भी ऐसा ही कह रहा था! स्टेशन मास्टर ने भी उसको पागल समझकर बाहर निकाल दिया|
अब गधे वाला वापस वैद्य के पास आया और बोला कि वे दोनों मेरे को पागल कहते हैं! वैद्य बोला-‘अरे भाई! मैंने पहले ही कहा था कि तू देरी से आया, इसलिये उन पर ज्यादा मसाला चढ़ गया! अधिक मसाला चढ़ने से अब वे कब्जे में नहीं रहे! अब मैं क्या करूँ!’
इसी तरह मनुष्य अभिमान कर लेता है कि मैं बड़ा समझदार हूँ, बड़ा जानकार हूँ, तुम्हारे को वर्षों तक पढ़ा सकता हूँ तो यह उस पर मसाला ज्यादा चढ़ गया| यह पता नहीं कि पहले जन्म में क्या थे, पर अब मनुष्य बन गये तो मसाला अधिक चढ़ गया कि मैं ऐसा हूँ, तुम समझते नहीं! इस तरह जब मसाला अधिक चढ़ जाता है, तब अभिमान हो जाता है| फिर मनुष्य किसी की बात नहीं मानता!