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एक शहर में चार साधु

एक शहर में चार साधु आये| एक साधु शहर के चौराहे में जाकर बैठ गया, एक घण्टाघर में जाकर बैठ गया, एक कचहरी में जाकर बैठ गया और एक श्मशान में जाकर बैठ गया|

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चौराहे में बैठे साधु से लोगों ने पूछा कि बाबाजी! आप यहाँ आकर क्यों बैठे हो? क्या और कोई बढ़िया जगह नहीं मिली? साधु ने कहा-‘यहाँ चारों दिशाओं से लोग आते हैं और चारों दिशाओं में जाते है| किसी आदमी को रोका तो वह कहता है कि रुकने का समय नहीं है, जरुरी काम पर जाना है| अब यह पता नहीं लगता कि जरुरी काम किस दिशा में है? सांसारिक कामों में भागते-भागते जीवन बीत जाता है, हाथ कुछ लगता नहीं! न तो सांसारिक काम पूरे होते हैं और न भगवान् का भजन ही होता है! इसलिये हमें यह जगह बैठने के लिये बढ़िया दिखती है, जिससे सावधानी बनी रहे|’  घण्टाघर  में बैठे साधु से लोगों ने पूछा कि बाबाजी! यहाँ क्यों बैठे हो? साधु ने कहा-‘घड़ी की सुईयाँ दिनभर घुमती हैं, पर बारह बजते ही हाथ जोड़ देती हैं कि बस, हमारे पास इतना ही समय है, अधिक कहाँ से लायें? घण्टा बजता है तो वह बताता है कि तुम्हारी उम्र में से एक घण्टा कम हो गया! जीवन का समय सिमित है| प्रतिक्षण आयु नष्ट हो रही है और मौत नजदीक आ रही है| अतः सावधान होकर अपना समय भगवान् के भजन में और दूसरों की सेवा में लगाना चाहिये| इसलिये साधु के बैठने की यह जगह हमें बढ़िया दिखती है, जिससे सावधानी बनी रहे|’ कचहरी में बैठे साधु से लोगों ने पूछा कि बाबाजी! आप यहाँ क्यों बैठे हो? साधु ने कहा-‘यहाँ दिन भर अपराधी आते हैं और पुलिस उनको डंडे मारती है| मनुष्य पाप तो अपनी मरजी से भोगना पड़ता है| अगर वह पाप करे ही नहीं तो फिर दण्ड क्यों भोगना पड़े? इसलिये साधु के बैठने की यह जगह बढ़िया दिखती है, जिससे सावधानी बनी रहे|’

श्मशान में बैठे साधु से लोगों ने पूछा कि बाबाजी! आप यहाँ क्यों बैठे हो? साधु ने कहा-‘शहर में कोई भी आदमी सदा नहीं रहता| सबको एक दिन यहाँ आना ही पड़ता है| यहाँ आने के बाद फिर आदमी कहीं नहीं जाता| यहाँ आकर उसकी यात्रा समाप्त हो जाती है| कोई भी आदमी यहाँ आने से बच नहीं सकता| अतः जीवन रहते-रहते परम लाभ की प्राप्ति कर लेनी चाहिये, जिससे फिर संसार में आकर दुःख न पाना पड़े| इसलिये मेरे को यह जगह बैठने के लिए बढ़िया दिखती है, जिससे सावधानी बनी रहे|’