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दुर्गति का कारण

शरीर बहुत ही प्यारा लगता है, पर यह जाने वाला है| जो जाने वाला है उसकी मोह-ममता पहले से ही छोड़ दें| यदि पहले से नहीं छोड़ी तो बाद में बड़ी दुर्दशा होगी| भोगों में, रूपये में, पदार्थों में, आसक्ति रह गयी, उनमे मन रह गया तो बड़ी दुर्दशा होगी| साँप, अजगर बनना पड़ेगा; भूत प्रेत, पिचाश आदि न जाने क्या-क्या बनना पड़ेगा!

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एक संत की बात है हमने सुनी| विरक्त, त्यागी संत थे| पैसा नहीं छूते थे और एकांत में भजन करते थे| एक भाई उनकी बहुत सेवा किया करता|

रोजाना भोजन आदि पहुँचाया करता| एक बार किसी जरुरी काम से उसे दूसरे शहर जाना पड़ा| तो उसने संत से कहा कि महाराज! मैं तो जा रहा हूँ| तो संत बोले कि भैया! हमारी सेवा तुम्हारे अधीन नहीं हैं, तुम सो जाओ| उसने कहा कि महाराज! पीछे न जाने कोई सेवा करे न करे? मैं बीस रूपये यहाँ सामने गाड़ देता हूँ, काम पड़े तो किसी से कह देना| बाबाजी ना-ना- करते रहें, पर वह तो बीस रूपये गाड़ ही गया| अब वह तो चला गया| पीछे बाबाजी बीमार पड़े और मर गये| मरकर भूत हो गये! अब वहाँ रात्रि में कोई रहे तो उसे खड़ाऊँ की खट-खट-खट आवाज सुनायी दे| लोग सोचें कि बात क्या है? जब वह भाई आया तो उसे कहा गया कि रात को खड़ाऊँ की आवाज आती है, कोई भूत प्रेत है, पर किसी को दुःख नहीं देता| वह रात्रि में वहाँ रहा| उसे बड़ा दुःख हुआ| उसने प्रार्थना की तो बाबा जी दिखे और बोले कि मरते वक्त तेरे रुपयों की तरफ मन चला गया था| अब इन्हें तू कहीं लगा दे तो मैं छुटकारा पा जाऊँ! बाबाजी ने रूपये को कामो में भी नहीं लिया पर ‘मेरे लिए रूपये पड़े हैं’ इस भाव से ही दशा हो गयी| अब वे रूपये वहाँ से निकालकर धार्मिक काम में लगाये गये, तब कहीं जाकर बाबाजी की गति हुई|

वृन्दावन की एक घटना हमने सुनी थी| एक गली में एक भिखारी पैसे माँगा करता था| उसके पास एक रुपये से कुछ कम पैसे इकट्ठे हो गये थे| वह मर गया| जहाँ उसके चीथड़े पड़े थे, वहाँ लोगों ने एक छोटा-सा साँप बैठा हुआ देखा| उसे कई बार दूर फेंका गया, पर वह फिर उन्हीं चिथड़ो में आकर बैठ जाता| जब नहीं हटा तो सोचा बात क्या है? साँप को दूर फेंककर चिथड़ो में देखा तो उसमें से कुछ पैसे मिले| वे पैसे किसी काम में लगा दिये तो फिर साँप देखने में नहीं आया|

यह जो भीतर वासना रहती है, यह बड़ी भयंकर होती है| वासना तब रहती है, जब वस्तुओं में प्रियता होती है| जहाँ वस्तुओं की प्रियता या आकर्षण रहता है, वहाँ भगवान् की प्रियता जाग्रत् होनी चाहिये|

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