द्रौपदी

द्रौपदी

पांडवों ने अब पांचाल का रास्ता पकड़ा| वहां के राजा द्रुपद (जिन्हें अर्जुन, द्रोण के सामने बंदी बनाकर लाये थे) की कन्या, राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला था|

“द्रौपदी” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

द्रुपद द्वारा आयोजित इस स्वयंवर में अनेक राजा और राजकुमार उपस्थित थे क्योंकि राजकुमारी द्रौपदी न केवल सुन्दर और विदुषी थी, बल्कि एक विख्यात और शक्तिशाली राजा की पुत्री भी थी| राजा द्रुपद ने विशाल सभामंडप में एक बहुत कठिन प्रतियोगिता आयोजित की थी जिसे जीतनेवाले राजा से उनकी पुत्री का विवाह होना था| दूर-दूर के राज्यों के राजा राजकुमारी द्रौपदी को पत्नी के रूप में पाने के इच्छुक थे|

पांडवों ने इस आयोजन और स्वयंवर के विषय में सुना और इसमें भाग लेने का निश्चय किया| गरीब ब्राह्मणों के वेश में पांडव राजदरबार पहँचे, वहां उन्होंने अनेक राजाओं तथा राजकुमारियों को देखा-द्वारिका से श्रीकृष्ण, हस्तिनापुर से दुर्योधन, अंग देश के कर्ण, चेदी से शिशुपाल और मगध से जरासंध भी आए थे| द्रुपद अपने राज सिंहासन पर विराजमान थे| प्रतियोगी को दरबार के बीचोंबीच रखे हुए विशाल धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ानी थी| फिर ऊपर लगे हुए चक्र में घुमती केवल मछली की सुनहरी आंख में लक्ष्य साधना था| लक्ष्य साधने के लिए वह केवल मछली के प्रतिबिंब को नीचे रखे जल-कुंद में देख सकता था| प्रतियोगी अधिक से अधिक पांच बाणों का प्रयोग कर सकता था|

अनेक पराक्रमी राजा राजकुमारों ने धनुष पर प्रत्यंचा चढाने का असफल प्रयास किया| दुर्योधन की चेष्टा भी निष्फल रही| अंत में अंगराज कर्ण आगे आए| उन्होंने धनुष को उठाकर उस प्रत्यंचा चढ़ा दी, परन्तु द्रौपदी ने उनसे विवाह करने से मना कर दिया क्योंकि वे उच्च या क्षत्रिय जाति के न थे| कर्ण का मुंह क्रोध से लाल हो गया| धनुष वापस रखकर वे अपने स्थान पर जाकर बैठ गए|

तदुपरान्त साधारण लोगों के बीच बैठे हुए अर्जुन, जो कि ब्राह्मण जैसे प्रतीत हो रहे थे, आगे बढ़े और द्रौपदी से अपनी निपुणता का प्रणाम देने की आज्ञा  मांगी| राजा की स्वीकृति पाकर, चेहरे पर क्षत्रिय-आभा के लिए, अर्जुन आगे बढ़े| उन्होंने सहज भाव से धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई और लक्ष्य की ओर तीर चला दिया| उपस्थित राजा राज कुमार देखते रह गए| उनके लिए यह असहनीय था कि वे एक सामान्य से दिखनेवाले ब्राह्मण से परास्त हो गए| द्रौपदी ने अर्जुन के गले में वरमाला पहना दी और पांडवों ने हर्षनाद किया|

अपमानित राजा और राजकुमार अर्जुन को द्रौपदी के साथ दरबार से जाने से रोकने लगे| भीम अर्जुन की सहायता के लिए आगे आये| इस बीच कृष्ण और बलराम ने, जो वहां अतिथि के रूप में उपस्थित थे, राजकुमारों को शांत किया| भीम, अर्जुन और द्रौपदी को लेकर निकल गए| युधिष्ठिर नकुल और सहदेव पहले ही चुपचाप वहां से जा चुके थे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि कोई उन्हें पहचाने|

द्रुपद ने अपने पुत्र धृष्टदयुम्न को एक तरफ बुलाकर कहा, “तुम इन सब का चुपचाप पीछा करो| हमें पता लगना होगा कि ये कौन हैं| ये कोई साधरण ब्राह्मण नहीं लगते, मुझे सन्देह है कि वे पांडव हैं|”

धृतद्युम्न ने तुरन्त कुंती को पहचान लिया-अर्थात पांडव अभी जीवित थे| यह शुभ समाचार अपने पिता को देने की ओर चल दिया|

इधर जब द्वारा खोलकर कुंती बाहर आई तो भिक्षा की जगह द्रौपदी को देखकर बोलीं, “अरे, अरे, मैंने यह क्या कह दिया|” चिंतित होकर भरे कंठ से कहने लगीं, “अब हमें क्या करना चाहिए?”

राजा द्रुपद न जब यह सुना तो विरोध प्रकट करते हुए बोले, “मेरी पुत्री पांच भाइयों से विवाह कैसे कर सकती है?” परन्तु पांडव सदैव अपनी माताश्री की आज्ञा का पालन करते थे, और इस बार भी उन्होंने माँ की आज्ञा मानी| इस तरह द्रौपदी का विवाह पांच पांडवों से हुआ| पांडवों के जीवित होने का समाचार आग की तरह चारों ओर फैल गया था|

हस्तिनापुर लौटने पर कर्ण ने दुर्योधन से कहा, “प्रिय मित्र, तुम्हें पांडवों को कुचल देना चाहिए|” कर्ण अब भी अर्जुन से घृणा करते थे| परन्तु द्रोण ने दुर्योधन से कहा, ” तुम इस तरह नीच काम कभी न करना| द्रुपद उनके साथ हैं| वे तुमसे कहीं अधिक प्रबल हैं| तुम सदा उनके साथ कलह क्यों करना चाहते हो?”

विदुर ने भी सलाह दी, “हाँ, उन्हें हस्तिनापुर बुलाकर मित्रता का हाथ बढाओ|”

भीष्म ने धृतराष्ट्र की ओर देखते हुए कहा, “महाराज, अतीत के विवाद और कलह को भूल जाइये| आखिरकार वे आपके भतीजे हैं, उनके साथ संबंध सुधारने का यह अच्छा अवसर है|”