Homeशिक्षाप्रद कथाएँदो घड़ी धर्म की

दो घड़ी धर्म की

एक नगर में एक धनवान सेठ रहता था। अपने व्यापार के सिलसिले में उसका बाहर आना-जाना लगा रहता था। एक बार वह परदेस से लौट रहा था। साथ में धन था, इसलिए तीन-चार पहरेदार भी साथ ले लिए। लेकिन जब वह अपने नगर के नजदीक पहुंचा, तो सोचा कि अब क्या डर। इन पहरेदारों को यदि घर ले जाऊंगा तो भोजन कराना पड़ेगा। अच्छा होगा, यहीं से विदा कर दूं। उसने पहरेदारों को वापस भेज दिया। 

“दो घड़ी धर्म की” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

दुर्भाग्य देखिए कि वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा कि अचानक डाकुओं ने उसे घेर लिया। डाकुओं को देखकर सेठ का कलेजा हाथ में आ गया। सोचने लगा, ऐसा अंदेशा होता तो पहरेदारों को क्यों छोड़ता?

आज तो बिना मौत मरना पड़ेगा। डाकू सेठ से उसका माल-असबाब छीनने लगे। तभी उन डाकुओं में से दो को सेठ ने पहचान लिया। वे दोनों कभी सेठ की दुकान पर काम कर चुके थे। उनका नाम लेकर सेठ बोला, अरे! तुम फलां-फलां हो क्या? अपना नाम सुन कर उन दोनों ने भी सेठ को ध्यानपूर्वक देखा। उन्होंने भी सेठ को पहचान लिया। उन्हें लगा, इनके यहां पहले नौकरी की थी, इनका नमक खाया है। इनको लूटना ठीक नहीं है। उन्होंने अपने बाकी साथियों से कहा, भाई इन्हें मत लूटो, ये हमारे पुराने सेठ जी हैं। यह सुनकर डाकुओं ने सेठ को लूटना बंद कर दिया। दोनों डाकुओं ने कहा, सेठ जी, अब आप आराम से घर जाइए, आप पर कोई हाथ नहीं डालेगा। सेठ सुरक्षित घर पहुंच गया। लेकिन मन ही मन सोचने लगा, दो लोगों की पहचान से साठ डाकुओं का खतरा टल गया। धन भी बच गया, जान भी बच गई। इस रात और दिन में भी साठ घड़ी होती हैं, अगर दो घड़ी भी अच्छे काम किए जाएं, तो अठावन घड़ियों का दुष्प्रभाव दूर हो सकता है। इसलिए अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की। इस कहावत को ध्यान में रखते हुए अब मैं हर रोज दो घड़ी भले का काम अवश्य करूंगा।