धृतराष्ट्र और पांडु
अंबिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य से हो गया और वे हस्तिनापुर में रहने लगीं| अंबिका के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम था धृतराष्ट्र| और अम्बालिका के पुत्र का नाम रखा गया पांडु| दासी-उतर विदुर भी धृतराष्ट्र और पांडु के भाई थे| वे अपने चातुर्य, ज्ञान और सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध हुए|
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धृतराष्ट्र नेत्रहीन पैदा हुए थे पर वे बहुत ही शक्तिशाली थे| पांडु कमजोर थे परन्तु वे एक कुशल धनुर्धारी थे|
बड़े होने पर धृतराष्ट्र का विवाह पति गांधारी नाम की राजकुमारी से हुआ| वे धार्मिक स्वभाव की थीं| उनके पति नेत्रहीन थे इसलिए गांधारी भी एक कपड़े से सदा अपनी आंखे बांधे रखती थीं|
दूसरे भाई पांडू की दो पत्नियाँ थी-कुंती और माद्री| विचित्रवीर्य की मृत्यु के पश्चात भीष्म ने पांडु को राजगद्दी पर बिठाया| राजा पांडु बहुत ही कुशलता और बुद्धिमानी से हस्तिनापुर की बागडोर संभाली| भीष्म और विदुर सदैव उनका पथप्रदर्शन करते थे|
एक दिन पांडु वन में शिकार खेलने के लिए गये| अज्ञानवश उनका बाण मृगछाल धारी एक ऋषि को जा लगा| मरणावस्था में ऋषि ने पांडु को श्राप दिया| वह श्राप इतना हृदय विदारक था कि पांडु उससे विचलित हो उठे और कुंती तथा माद्री सहित वन में जाकर रहने लगे| वहीं पांडु के घर कुंती से तीन पुत्र, और माद्री से दो पुत्र हुए| ये पांचो देवपुत्र थे| पांडु के पांच पुत्र-युधिष्ठिर का जन्म धर्मराज के वरदान से, भीम का वासुदेव, अर्जुन का इंद्र के वरदान से हुआ| सहदेव और नुकुल अश्विनी भाइयों के वरदान से जन्म थे| इन पांचो भाइयों में अगाध प्रेम था| वे एक-दूसरे के प्रति व्यवहार में निष्पक्ष और ईमानदार थे|
पांडु जिस समय वन में अपनी पत्नियों और पुत्र के साथ रहते थे| उनकी अनुपस्थिति में धृतराष्ट्र ने हस्तिनापुर का शासन संभाला| धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र और दुशला नामक एक पुत्री हुई| ये पुत्र कौरवों के नाम से प्रसिद्ध हुए| धृतराष्ट्र के ज्येष्ठ पुत्र का नाम था-दुर्योधन|
दुर्योधन के जन्म के समय बुद्धिमान विदुर ने धृतराष्ट्र को सलाह दी, “महाराज, इस बालक को कहीं फेंक दें या इसका वध करवा दें क्योंकि यह बच्चा क्षुद्र बुद्धि का होगा| यह सम्पूर्ण कौरव के नाश का विनाश बनेगा|”
स्वाभाविक था कि धृतराष्ट्र के पास पुत्र का वध करनेवाला हृदय नहीं था| कुछ समय पश्चात जंगल में ही राजा पांडु का स्वर्गवास हो गया| उनकी दोनों रानियों पर मानो व्रजपात हो गया| रानी माद्री अपने दो पुत्रों को कुंती को सौंप कर पांडु की चिता में जलकर सती हो गईं|