देश की आत्मा
साबरमती आश्रम के लिए जगह की तलाश में गांधीजी एक दिन वर्धा से पांच किलोमीटर ऊंची पहाड़ी पर गए। वहां एक झुग्गी बस्ती थी। गांधीजी को पता चला कि यह एक हरिजन बस्ती है। उन्होंने कहा, ‘साबरमती आश्रम के लिए यह उपयुक्त जगह है।’ जमनालाल बजाज उनके साथ थे। उन्होंने कहा, ‘लेकिन यहां बहुत गंदगी है।’ गांधी जी बोले, ‘यहां देश की आत्मा बसती है, इसलिए हरिजन बस्ती के फायदे के लिए यहां आश्रम बनाना ठीक रहेगा।’
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आश्रम बनाने का काम शुरू हो गया। गांधीजी वहीं झोपड़ी डाल कर रहते थे। गांधीजी सहित सभी लोगों का भोजन एक साथ बनता था। गांधीजी भी सभी के साथ बैठकर वहीं खाते थे। एक बार शाम को गांधी जी टहलते हुए हरिजन बस्ती में गए। उन्हें देख कर आश्चर्य हुआ कि ज्यादातर झोपड़ी में कद्दू उबाला जा रहा था। गांधीजी ने इस बारे में पूछा तो एक महिला बोली, ‘यह सबसे सस्ता है इसलिए जब भी सब्जी खानी होती है तो हम कद्दू खरीद लाते है।’ गांधीजी ने लौट कर अपने रसोइए से कहा, ‘कल से हमारे यहां कद्दू की उबली सब्जी बनेगी।’ रसोइया जानता था कि बापू को कद्दू पसंद नहीं था। उसने कहा, ‘बापू, आप तो कद्दू की सब्जी खाते ही नहीं।’ गांधीजी बोले, ‘अब खाऊंगा।’ रसोइया उस दिन से कद्दू की सब्जी बनाने लगा। एक बार आश्रम देखने बादशाह खान आए। वह कई दिन वहां ठहरे। उन्हें भी प्रतिदिन कद्दू की सब्जी परोसी गई। वह समझ नहीं पाए कि यहां हर रोज कद्दू की सब्जी क्यों बनती है। उन्होंने सोचा कि शायद बापू की सेहत ठीक न हो इसलिए उन्होंने पूछा, ‘बापू क्या आप की सेहत ठीक नहीं है जो हर रोज कद्दू की उबली सब्जी खाते हैं?’ गांधीजी बोले, ‘मेरी सेहत ठीक है। मेरे पड़ोस में रहने वाले हरिजन बस्ती के लोग, जब सस्ती होने के कारण रोज कद्दू की सब्जी खा सकते हैं तो हम क्यों नहीं खा सकते। हमें भी तो पता चलना चाहिए कि हमारे देश के लोग कैसे रहते हैं?’