दरिद्र ब्राह्मण
बहुत पहले एक छोटे-से गांव में एक एक गरीब, मगर भला ब्राह्मण रहता था| वह देवी का परम भक्त था और नित्य ही दुर्गा का नाम १०८ बार लिखे बिना अन्न-जल कुछ भी ग्रहण नहीं करता था| संपन्न परिवारों में शादी-ब्याह या फिर अंतिम संस्कार करवाना ही उसकी जीविका का एकमात्र साधन था| परंतु रोज तो गांव में ऐसा होता नहीं था|
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मुट्ठी भर पैसों से पत्नी और चार बच्चो का पेट भरना आसान नहीं था| अक्सर वह दुर्गा के आगे दुखड़ा रोया करता, “हे दुर्गा माँ, मेरे ऊपर कृपा कर!”
एक बार, जब उसे और उसके परिवार को कई दिन तक फाके करने पड़े, तो ब्राह्मण वन में गया और वहां जाकर फुट-फूटकर रोने लगा| “हे दुर्गा माँ! कब मेरे दुःख दूर करोगी? मेरा परिवार कई दिनों से भूखा है और अब मुझसे उनका दुःख बर्दाश्त नहीं होता| उनका भरण-पोषण करने में मेरी सहयता कर,दुर्गा माँ!”
जब ब्राह्मण रो-रोकर प्रार्थना कर रहा था, तभी वहां देवी दुर्गा और भगवान शिव अपने भक्तजनों का कुशलक्षेम जानने के लिए विचरण कर रहे थे| देवी ने ब्राह्मण के रोने की आवाज सुनी और भगवान शिव को उसका पूरा हाल सुना डाला| “हे कैलाशपति! कृपा करके इस ब्राह्मण को एक ऐसी हांड़ी दीजिए जिसमें मुदकी (खील का चावल) का अक्षुण्ण भण्डार हो|”
भगवान शिव ने तुरन्त ही हांडी भवानी के सामने धर दी| देवी ने ब्राह्मण को बुलाया और उसे वरदान देती हुई बोली, “हे ब्राह्मण! तुम्हारी आराधना से मै प्रसन्न हुई| यह हांडी लो, जब भी तुम्हें अन्न की आवश्यकता हो, इसे उल्टा करके हिलाना| जब तक तुम इसे फिर से सीधा नहीं कर दोगे, इसमें से स्वादिष्ट मुदकी गिरती रहेगी| इससे तुम अपने परिवार का पोषण भी कर सकोगे और जीविकोपार्जन के लिए बेच भी सकोगे|”
आनंदातिरेक में ब्राह्मण ने देवी को प्रणाम किया और अपने परिवार को यह वरदान दिखाने घर की ओर भागा| अभी वह कुछ ही दूर पहुंचा था कि उसके मन में सवाल आया कि हांडी सचमुच अपना कम करेगी भी या नहीं| उसने हांडी को उल्टा किया तो देखता है! हांडी से बहुत बढ़िया मुदकी निकल रही है| मुदकी को गमछे में बांधकर वह आगे निकल पड़ा|
दोपहर हो चली थी और ब्राह्मण के पेट में चूहे दौड़ रहे थे| पर उसने न तो स्नान किया था, न ही पूजा अर्चना ही की थी| उस पर पोटली में बंधी मुदकी उसकी भूख को और भड़का रही थी| पास में ही एक सराय थी| ब्राह्मण अन्दर गया और सराय के स्वामी से हांडी संभालकर रखे रहने के लिए बोला| तत्पश्चात,वह नहाने चला गया|
अब सराय वाला सोचने लगा कि आखिर इस साधारण-सी हांडी के लिए ब्राह्मण इतना चिंतित क्यों है| उसके पास रखने के ग्राहक आये थे लेकिन किसी ने भी इस तरह हांडी को संभालकर रखने की फरमाइश नहीं की थी|
वह हांडी को उलट-पलटकर देखने लगा पर उसे खाली पाकर सराय वाला बहुत निराश हुआ| लेकिन जैसे ही उसने हांडी को उलटा करके हिलाया, उसमें से बहुत-सी मुदकी गिरने लगी| उसने अपनी पत्नी और बच्चों को झट से बुलाया और पलक झपकते ही सराय के सब बर्तन और मर्तबान मुदकी से भर गए| अब तो सरायवाले के दिल में खोट आ गया| उसने सोचा, क्यों न वह जादुई हांडी उसकी हो जाए| फिर उसने दिव्य हांडी के स्थान पर बिल्कुल वैसा ही, पर साधारण हांडी रख दी|
इस बीच ब्राह्मण अपने नित्यकर्म और पूजा-पाठ से निवृत हो गया| उसने अपने गमछे में से नर्म-नर्म मुदकी निकली और आनंदपूर्वक खाने लगा| उसके पश्चात सराय वाले से वह बदली हुई हांडी लेकर खुशी-खुशी अपने घर की ओर चल पड़ा|
घर पहुंचकर उसने अपनी पत्नी और बच्चों को दुर्गा के वरदान के बारे में बताया पर किसी को भी उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ| उन्हें लगा कि गरीबी और भूख से ब्राह्मण का दिमाग फिर गया है| और जब हांडी में से मुदकी का एक भी दाना नहीं निकला तो उनका संशय सच में बदल गया|
ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ| सराय के मालिक की चाल उसकी समझ में आ गई| वह उल्टे पैर सराय पहुंचा पर सराय वाला बात से अंजान होने का नाटक करने लगा और उसने ब्राह्मण को वहां से भागा दिया|
ब्राह्मण फिर स जंगल पहुंचा और दुर्गा मैया से प्रार्थना करने लगा| “हे माँ! तेरा दिया हुआ प्रसाद चोरी हो गया है| तेरा भक्त लुट गया, माँ| मेरी सहायता कर|”
माँ दुर्गा और भगवान शिव ने फिर से ब्राह्मण पर कृपा की| उसे एक और हांडी देते हुए बोला, “जाओ वत्स! इस हांडी का सदुपयोग करना और इसे संभलकर रखना|”
ब्राह्मण घर की ओर चल पड़ा, पर बीच रास्ते में ही रुक गया, यह देखने कि इस बार हांडी में से क्या निकलेगा| उसने हांडी को उल्टा किया| पर इस बार उसमे से भोजन की जगह भयानक दिखने वाले राक्षस निकलकर उसे पीटने लगा|
अचंभित ब्राह्मण को देवी के इस वरदान का अर्थ समझ में आ गया और हांडी सीधा करके, वह एक बार फिर सराय जा पहुंचा|
सराय वाला ब्राह्मण को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ| ब्राह्मण ने फिर से उसे अपनी हांडी सौंप और उसे ध्यान पूर्वक रखने को बोला| इतना कहकर ब्राह्मण नहाने चला गया| ब्राह्मण के जाते ही सराय वाले ने अपने परिवार को बुलाया|सबने मिलकर हांडी को उलटा किया| उन्हें आशा थी कि इस बार तो मिठाई मिलेगी| लेकिन जब मिठाई की जगह भयंकर राक्षसों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया तो उनकी सारी खुशी हवा हो गई|
ब्राह्मण निवृत होकर जैसे ही वापस आया, सराय के मालिक ने उसके पैर पकड़ लिए और क्षमा याचना करने लगा| ब्राह्मण ने अपनी दिव्य हांडी वापस मांगी और इस दूसरी हांडी को सीधा करके राक्षसों से मुक्ति दिलाई|
प्रसन्नचित ब्राह्मण ने दो-दो हांडियां लेकर घर पहुंचा| खुशी-खुशी उसने दोनों हांडियां अपने परिवार को दिखाई|उसके बाद सबने मजेदार मुदकी से अपनी भूख शांत की|
अगले दिन ब्राह्मण ने मुदकी की दुकान शुरू कर दी |देखते ही देखते उस दुकान के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे| उसने अपने लिए एक पक्का घर भी बना लिया| आखिरकार, गरीबी और फाकों के दिन समाप्त हो गए|
पर कहते है न, कि समय बदलते देर नहीं लगती| ब्राह्मण के भी अच्छे दिन समाप्त हो चले थे| पहली बार तो वह बच गया क्योंकि ऐन वक्त पर घर लौट आया था| हुआ यूं कि उसके बच्चों ने गलती से दूसरी हांडी को उलटा कर दिया|
जब वह घर पहुंचा तो राक्षस धड़ल्ले से बच्चों की धुनाई कर रहे थे| उसने लपकर हांडी को सीधा किया और उसे संभालकर रख दिया|
पर वह दूसरी बार, उसके आने में देर हो गई| छिना-झपटी में बच्चो के हाथ से वह दिव्य हांडी छूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गई|
एक फिर बड़े भारी मन से ब्राह्मण ने माँ दुर्गा और भगवान शिव को स्मरण किया| दोनों ब्राह्मण के समक्ष प्रकट हुए और उसकी दुखभरी कहानी सुनकर उसे एक और हांडी दे डाली| “इसके बाद और कोई हांडी नहीं,” दोनों ने ब्राह्मण को आग्रह कर दिया|
ब्राह्मण ने उन्हें प्रणाम किया और घर भागा| घर पहुंचकर अपनी पत्नी और बच्चों के सामने उस नई हांडी को उलटा किया| और इस बार मुदकी की जगह हांडी में से संदेशों की बरसात होने लगी| गोल-गोल चांद के टुकड़े जैसी सन्देश मिठाई देखकर ब्राह्मण परिवार के मुंह में पानी आ गया| उनकी खुशी का पारावार न था|
ब्राह्मण ने मिठाई की दुकान खोल ली और उसके स्वादिष्ट संदेशों की खबर आग की तरह फैल गई| उसके आसपास के सभी गावों में शादी विवाह का कोई भी सुअवसर उसकी दुकान की मिठाइयों के बिना अधुरा रहता|
ब्राह्मण की दिन-दुगुनी उन्नति से गांव के जमींदार को ईर्ष्या हुई| उसने भी उस चमत्कारी हांडी के बारे में बहुत सुना था| मन ही मन उसने तय कर लिया कि उस हांडी को वह किसी भी तरह हासिल करेगा|
जमींदार के बेटे की शादी जल्दी ही होने वाली थी| इस अवसर पर उसने कई लोगों को आमंत्रित किया और ब्राह्मण से भी कहा की वह अपने साथ अपनी हांडी लेता आये, जिससे मेहमानों की खातिरदारी मजेदार संदेशों से की जा सके|
ब्राह्मण को जमींदार की नियत पर शक ती हुआ पर उसे मना करना भी मुश्किल था| आखिर वह जमींदार था| जैसे ही ब्राह्मण की हांडी से संदेश के हजार टुकड़े निकले, जमींदार ने उसके हाथ से हांडी छीन ली| उसने ब्राह्मण को खूब बुरा-भला कहा और उसे वहां से भगा दिया|
ब्राह्मण कुछ न कर सका और बेचारा चुपचाप घर लौट आया| उसकी अक्ल काम ही नहीं कर रही थी| जैसे ही उसने माँ दुर्गा का स्मरण किया, उसे दूसरी हांडी की भी याद आयी|
कांपते हाथों से उसने हांडी निकली और विवाह में लौट आया| वहां पहुंचकर उसने हांडी उलट दी| हांडी उलटते ही उसमे राक्षसों की बारिश होने लगी जो जमींदार और उसके चेले-चपाटों को मारने के लिए दौड़ पड़े| राक्षसों ने जमींदार को दौड़ा दौड़कर छठी का दूध याद दिला दिया|
थक-हारकर वह ब्राह्मण से क्षमा मांगने लगा और फिर उसकी हांडी भी लौटा दी|
उसके बाद, ब्राह्मण अपने परिवार के साथ प्रसन्नतापूर्वक दिन बिताने लगा|