‘द’ अक्षर की दीक्षा
उपनिषद् की कथा है| प्रजापति ब्रह्मा की तीन प्रकार की संतानें थी| पहले देवता थे जिन्हें सब प्रकार के सुख-वैभव प्राप्त थे, परंतु वे सदा भोग-विलास में लीन रहते थे|
“‘द’ अक्षर की दीक्षा” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
दूसरे थे मानव, जो धन-वैभव का अधिकतम संग्रह करने में संलग्न रहते थे; और तीसरे थे असुर याँ दानव, जो दूसरों पर सदा क्रूरता एवं अत्याचार किया करते थे| देवता, मानव और असुर तीनों विधाध्ययन के लिए पिता प्रजापति के पास गए| तीनों ने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की| ब्रह्मचर्यपूर्वक विधाध्ययन के बाद देवताओं ने प्रजापति से कहा- “भगवान्, हमारी पढ़ाई पूरी हो गई है, हमें दीक्षा दीजिए|”
प्रजापति ने दीक्षा दी- ‘द’ केवल एक अक्षर की| फिर पूछा- “इस ‘द’ अक्षर का कुछ मतलब समझे|” देवता बोले- “हम समझ गए| हम इन्द्रिय लोलुप हैं| आपने हमें शिक्षा दी है ‘द’- दाम्यत- इन्द्रियों का दमन करो|”
ब्रह्मा ने उत्तर दिया- “हाँ, तुमने ठीक समझा है|”
पढ़ाई पूरी कर मानव भी प्रजापति के पास गए| उन्होंने भी पिता प्रजापति से दीक्षा देने की प्रार्थना की| प्रजापति ने उन्हें भी दीक्षा दी- ‘द’- अक्षर की| पूछा- “इस ‘द’ का मतलब समझे?” मानव बोले- “हम पूरी तरह समझ गए हैं| हम लोग लोभी हैं; हमें आपने ;द’ से ‘दत्त’- ‘दान दो’ की दीक्षा दी है|” प्रजापति ने स्वीकार किया कि मनुष्य ने ठीक अर्थ समझा है|
अंत में असुर प्रजापति के पास पहुँचे| उन्होंने भी प्रजापति से दीक्षा देने का अनुरोध किया| ब्रह्मा ने उन्हें भी दीक्षा दी ‘द’ अक्षर की| पूछा- “इस ‘द’ अक्षर का मतलब समझे?” असुर बोले- “हम क्रूर लोग हैं| आपने हमें ‘द’ अक्षर से कहा है- ‘दयध्वम्’- ‘दया करो’|” प्रजापति बोले- “तुम ठीक मतलब समझे हो|”
वर्तमान समय से भी इस विश्व में देव, मानव और असुर तीनों ही प्रकार के व्यक्ति हैं| उनके लिए प्रजापति की सीख है- “दमन करो इंद्रियों का, नियंत्रण करो; लोभ मत करो- दान दो, और किसी पर भी कठोरता न बरतो| सब पर दया करो|” आज कड़कती बिजली देवी वाणी के रुप में बार-बार कह रही है- ‘द-द-द’ दाम्यत,- दमन करो, ‘दत्त’- दान करो, ‘दयध्वम्’- दया करो|” इस प्रकार इस कहानी से प्रत्येक मनुष्य को भी इन तीनों बातों की शिक्षा लेनी चाहिए|