चोर का बलिदान
एक बार की बात है तीन नवयुवक एक शहर में रहते थे| तीनों बड़े गहरे मित्र थे| उनमें से एक राजकुमार था, राजा का सबसे छोटा बेटा| दूसरा राजा के मन्त्री का पुत्र था और तीसरा था एक धनी व्यापारी का लड़का|
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ये तीनों मित्र सदा साथ-साथ रहते| उन्हें पढने-लिखने या कोई काम करने में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी| उनका सारा समय मौज उड़ने में बिताता था|
एक दिन राजा ने अपने पुत्र को बुलाया और कहा, “तुम अपना सारा समय व्यर्थ ही बरबाद करते हो| अपने तौर-तरीके सुधार लो तो अच्छा है|”
मन्त्री ने भी अपने पुत्र को बुलाया और कहा, “तुम जैसे अपना समय नष्ट करते हो मुझे जरा भी पसंद नहीं| अपने तौर-तरीके ठीक करो|”
व्यापारी ने भी अपने पुत्र को बुलाया और कहा, “अपने आपको सुधारो| यदि अब तुम मेरे कहने पर न चले तो मै तुम्हे घर से निकाल दूंगा|”
तीनों मित्र बैठकर आपस में सोच-विचार करने लगे| राजकुमार बोला, “मेरे पिताजी ने मुझे अपने तौर-तरीके ठीक करने के लिए कहा है|”
“बिलकुल यही बात मेरे पिताजी ने भी मुझसे कही है,” मन्त्री-पुत्र बोला|
व्यापारी का लड़का बोला, “मेरे पिताजी ने भी मुझसे यही कहा है, उन्होंने तो मुझे न सुधरने पर घर से निकाल देने की धमकी भी दी है|”
राजकुमार बोला, “यह तो बहुत बुरी बात है| हम ऐसा अपमान नहीं सह सकते, चाहे कहने वाले हमारे पिता ही क्यों न हों|”
मन्त्री के बेटे ने पूछा, “लेकिन हम कही और जायें भी तो कैसे? हमारे पास तो पैसे हैं नहीं| कही जाने के लिए भी तो हमें अपने घर वालों से पैसे मांगने पड़ेंगे|”
व्यापारी का पुत्र बोला, “हमें स्वयं धन कमाने का कोई तरीका खोजना चाहिए| यहां से कुछ दूर एक पहाड़ है| उस पहाड़ पर कीमती रत्न पाये जाते हैं|”
राजकुमार ने कहा, “चलो, फिर वहीँ चले| यदि हमें कुछ रत्न मिल गये तब तो हम अपने घरवालों की सहायता लिए बिना भी अपने गुजारा कर सकते हैं|”
तीनों मित्र यात्रा पर रवाना हो गये| उन्होंने एक बड़ी नदी पार की और फिर एक घने जंगल में से गुजरकर अंत में उस पहाड़ तक पहुंच गये| वे उस पर चढ़ने लगे और चोटी तक जा पहुंचे| उनका भाग्य अच्छा था| प्रत्येक को एक-एक बहुमूल्य रत्न मिल गया|
“अब हम घर लौट सकते हैं,” उन्होंने कहा|
पहाड़ से नीचे उतरकर उन्हें वापसी सफर की कठिनाइयाँ याद आईं|
एक बार फिर उन्हें घने जंगल से गुजरना पड़ेगा जहां दिन में भी रात जैसा अँधेरा रहता है| व्यापारी का पुत्र बोला, “जंगल में लुटेरे और चोर होते हैं| वे हमें मारकर हमारे रत्न छीन सकते हैं|”
राजकुमार ने कहा, “बात तो सच है| अब हमें कोई ऐसा रास्ता ढूढ़ना चाहिए जिससे ये रत्न सुरक्षित घर तक पहुंच सकें|”
मन्त्री-पुत्र ने सलाह दी, “मैं बताता हूं कि हमें क्या करना चाहिए| हमें जंगल में से गुजरने से पहले अपने-अपने रत्न को निगल लेना चाहिए| वे हमारे पेट में सुरक्षित रहेंगे|”
राजकुमार बोला, “यह विचार तो अच्छा है| इस तरह से किसी को यह पता नहीं चलेगा कि रत्न कहां है?”
जब वे जंगल के नजदीक पहुंचे तो खाना खाने के लिए रुके| हर एक अपना-अपना रत्न खाना खाते समय निगल गया| दुर्भाग्य से एक चोर इन तिनों मित्रों का पीछा कर रहा था| उसने इन तीनो की सारी बातें सुन ली थीं और इन्हें रत्न निगलते भी देख लिया था| चोर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने तीनों मित्रों को मारकर रत्न हथिया लेने की योजना बनाई|
जब तीनों मित्र जंगल में घुसने लगे तो चोर उनके पास आकर बोला, “श्रीमानजी, आगे घना जंगल है| मुझे अकेले जाने में डर लगता है| क्या मै भी आपके साथ चल सकता हूं|”
तीनों मित्रों ने उसे अपने साथ चलने की अनुमत दे दी| अपने दल में एक और आदमी के आ मिलने से वे प्रसन्न थे कि तीन से चार भले|
जंगल के आधे रास्ते में एक गांव था| उस गांव के मुखिया के पास एक तोता था| मुखिया को अपना तोता बड़ा ही प्यारा था| वह तोते की सारी बात समझता था| उसे विश्वास था कि तोता सदा सच बोलता है|
चारों आदमी उस गांव में पहुंच गये| जब वे मुखिया के घर के पास से गुजर रहे थे तो तोता बोलने लगा, “यात्रियों के पास रत्न हैं| यात्रियों के पास रत्न हैं|” मुखिया ने सब कुछ सुना और उसने भी वे रत्न हथिया लेने का निश्चय किया|
उसने जल्दी से अपने आदमियों को भेजा कि यात्रियों को पकड़ लायें| चोर और तीनों मित्रों को पकड़कर मुखिया के सामने लाया गया|
मुखिया ने उनकी तलाशी ली| लेकिन उसे रत्न कहीं न मिले| उसने मन ही मन सोचा कि शायद मेरे तोते ने इस बार गलती की है| उसने अपने आदमियों को आज्ञा दी कि यात्रियों को छोड़ दें| चारों फिर अपनी यात्रा पर आगे बढ़े|
ज्यों ही वे गांव से बाहर निकले तोते ने फिर रट लगाई, “यात्रियों के पास रत्न हैं| यात्रियों के पास रत्न हैं|”
मुखिया स्वयं से ही बोला, “मेरे तोते ने कभी गलत नहीं कहा, यात्रियों के पास रत्न अवश्य होंगे|” उसने अपने आदमियों को फिर पकड़ कर लाने के लिए कहा|
एक बार फिर चोर और तीनों मित्रों को पकड़कर मुखिया के सामने लाया गया| इस बार फिर मुखिया ने उनके सब कपड़े उतरवाकर तलाशी ली, मगर फिर भी उसको रत्न न मिले|
उसने मन ही मन सोचा कि मेरा तोता तो हमेशा ही सच बोलता है| उसने उन लोगों से कहा, “रत्न तो कहीं दिखाई नहीं देते| लगता है तुमने निगल लिये हैं|”
चोर और तीनों मित्र चुप रहे|
मुखिया ने कहा, “मै जानता हूं कि मुझे क्या करना चाहिए, कल सुबह मै तुम्हारे पेट चीर डालूंगा और तब मुझे अवश्य ही रत्न मिल जायेंगे|”
इसके बाद मुखिया ने चारों यात्रियों को कमरे में बंद कर दिया और कुछ नौकरों को उनकी चौकसी के लिए कमरे के बाहर बिठा दिया|
चारो में से कोई भी नहीं सो सका| डर के मारे उनका बूरा हाल हो रहा था| एक ही विचार उन्हें खाये जा रहा था की अगली सुबह वे मौत के घाट उतार दिये जाएंगे|
चोर बैठ-बैठ सोचता रहा| ‘मेरे पेट में कोई रत्न नहीं है| यदि मै मुखिया से कहूं कि वह पहले मुझे मारे तो उसे मेरे पेट में से तो कुछ नहीं मिलने वाला है| तब वह सोचेगा कि हम में से किसी के पास भी कुछ नहीं है| सो शायद वह दूसरों को छोड़ दे| यदि इन तीनों को उसने पहले मारा और इनके पेट में से रत्न मिल गये तो मुखिया मुझे भी अवश्य मरवा देगा, क्योंकि उसे क्या पता कि मेरे पेट में कोई रत्न है या नहीं, सो मुझे किसी भी दशा में मरना ही है| यदि हो सके तो मैं इन तीनों नवयुवकों का जीवन बचा लूं|’
सुबह हुई| मुखिया चारों यात्रियों के पेट चीर डालने के लिए तैयार हुआ| चोर ने मुखिया से याचना की कि मारने से पहले वह उसकी बात सुन ले| वह बोला, “मै अपने भाईयों को मरता हुआ नहीं देख सकता| कृपा करके पहले मेरा पेट चीरा जाये|”
मुखिया ने सोचा कि मारना तो सभी को है, उसमें आगे-पीछे क्या, इसलिए वह राजी हो गया|
चोर का पेट चीरा गया| मुखिया को उसमे से कुछ भी नहीं मिला|
“हाय!” वह बोला, “मैंने तो व्यर्थ ही इस आदमी की हत्या कर दी| इस बार मेरे तोते ने सचमुच ही गलती की है|”
मुखिया ने तीनों को छोड़ दिया और वे अपने घरों को चल दिये| बाद में वे अपना-अपना रत्न बेचकर खूब धनी हो गये|
लेकिन वे उस चोर कभी नहीं भूले जिसने उनकी जान बचाने के लिए अपना जीवन बलिदान किया था|