चरित्र का निर्माण
यह घटना अंग्रेजी शासन काल की है| प्रसिद्ध काकेरी षड्यंत्र कांड के माध्यम से विदेशी अंग्रेजी शासन से जुझने वाले सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी श्री रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन-निर्माण में महर्षि दयानंद सरस्वती और आर्यसमाज का यजस्वी योगदान रहा है|
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जब वह बालक ही थे, उनका आर्यसमाज के स्वामी सोमदेव से संपर्क स्थापित हुआ| आर्य समाज शाहजहाँपुर में निवास करते हुए उन्होंने जीवन में उन्नति के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती और आर्यसमाज के संदेश एवं उपदेश का पाठ पढ़ा और उसके लिए चरित्र-निर्माण की सीख ली| बात उन दिनों की है, जब बालक रामप्रसाद आठवीं कक्षा में पढ़ते थे| एक बार उन्हें एक यात्रा पर जाना था| रेलवे स्टेशन पहुँच कर उन्होंने टिकट घर की खिड़की से तीसरे दर्जे का टिकट एक यात्रा पर जान था रेलवे स्टेशन पहुँचकर उन्होंने टिकटघर की खिड़की से तीसरे दर्जे का टिकट खरीदा| जब वह प्लेटफार्म पर आए, सामने ही डिब्बे में उनके कुछ घनिष्ठ साथी बैठे थे| रामप्रसाद को सामने देखकर वे साथी उन्हें आग्रहपूर्वक अन्दर डिब्बे में ले गए| उसी समय गाड़ी चल दी| बालक रामप्रसाद ने देखा कि जिस डिब्बे में वह बैठे हैं, दूसरे दर्जे का है| वह बेचैन होकर खड़े हो गए| साथी बोले- “क्यों, क्या बात है?” बालक रामप्रसाद ने उत्तर दिया- “मेरा इस डब्बे में यात्रा करना ठीक नहीं| मेरे पास तीसरे दर्जे का टिकट है, मैं दूसरे दर्जे में यात्रा कर रहा हूँ, इस प्रकार मैं चोरी कर रहा हूँ|”
उसके सब साथी हँस पड़े| एक साथ बोला- “भाई, इसमें फिक्र की क्या बात है? यही बैठे रहो|” रामप्रसाद की बेचैनी में कमी नहीं आई| अगला स्टेशन आते ही वह डिब्बे से उतर पड़ा| सीधे स्टेशन मास्टर के पास पहुँचा और बोला- “श्रीमान्! मैं भूल से दूसरे डिब्बे में बैठ गया था, नियमानुसार दोनों दर्जों के टिकट का अंतर मेरे से वसूल कर लीजिए|” स्टेशन मास्टर ने उस ईमानदार बालक की पीठ थपथपाई और कहा- “तुम जैसे बालकों पर कोई भी देश गर्व कर सकता है|”
बड़े होकर यही बालक प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल बना, जिसने भारत माता की जय बोलते हुए देश के लिए फाँसी का फंदा चूम लिया| कितना ऊँचा चरित्र था उनका| इसी प्रकार हमें भी उनके जीवन से ऐसी ही शिक्षा लेनी चाहिए|