बुढ़िया की तलवार (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर और बीरबल शाम को सैर कर रहे थे| मार्ग में उन्हें एक वृद्ध स्त्री मिली, जिसके हाथ में म्यान सहित एक तलवार थी| बादशाह अकबर उस वृद्ध स्त्री के पास गए और बोले – “माताजी, यह तलवार लेकर आप यहां क्यों कड़ी हैं|”
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“जहांपनाह! मैं बहुत गरीब हूं, सोचा इस तलवार को बेच दूं ताकि कुछ दिन के रोटी-पानी का जुगाड़ हो जाए|” वृद्धा ने कहा|
बादशाह अकबर ने उसके हाथ से तलवार ली और म्यान से निकालकर देखी| उन्हें तलवार किसी काम की न लगी क्योंकि वह काफी पुरानी थी और उसमें जंग लग चुका था| उन्होंने वह तलवार वापस म्यान में डालकर वृद्धा को लौटा दी|
वृद्धा म्यान से तलवार निकालकर बड़े गौर से देखने लगी| यह देखकर बादशाह को अचरज हुआ| उन्होंने कहा – “माताजी, आप ऐसे क्या देख रही हैं, मैंने आपकी तलवार बदली नहीं है|”
“हुजूर, मैं कुछ कहूं|” बीरबल ने बादशाह से पूछा|
“हां-हां, बीरबल कहो, क्या बात है?”
“हुजूर, दरअसल बात यह है कि इस वृद्धा को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है कि बुजुर्गों की बात झूठी कैसे हो सकती है|”
“क्या मतलब…?”
“हुजूर, बुजुर्गों ने कहा है कि लोहा पारस को छू जाए तो सोना बन जाता है| इसलिए यह वृद्धा परेशान है क्योंकि उसकी तलवार पारस जैसे हाथों में जाने के बाद भी लोहा ही है|”
बीरबल की बात का गूढ़ रहस्य समझ गए बादशाह अकबर| उन्होंने वृद्धा को अगले दिन तलवार सहित दरबार में आने का आदेश दिया| वृद्धा के दरबार में आने पर उससे तलवार लेकर उसके बराबरी सोना दे दिया|