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बुद्धिमान मेमना

एक घने जंगल की गुफा में एक नन्हा मेमना अपने माँ-बाप के साथ रहता था| बकरी परिवार के खाने के लिए जंगल में बहुत कुछ था-झाड़िया,पत्तियां आदि| तीनों का जीवन आराम से कट जाता, बस शिकारी जानवरों का डर भर न होता|

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पूरा जंगल बड़े-बड़े बाघों और चालाक, निर्दयी गीदड़ों से भरा हुआ था| बकरी और मेढ़ा, दोनों अपने बेटे को इन भयंकर जानवरों से बचाने की फिक्र में रहते| हर सुबह, अपने बेटे को गुफा में छोड़कर दोनों भोजन की तलाश में निकल जाते| उन्होंने मेमने से कह रखा था कि वह गुफा के बाहर कभी कदम न रखे और न ही उसके वहां होने का किसी को पता चले|

मेमना बड़ा हो रहा था और चाहता था कि दुनिया देखे| इसलिए एक भरी दोपहरी में वह गुफा से बाहर आया और चलते-चलते बहुत दूर निकल गया| विशाल वटवृक्षों और झर-झर करते झरनों को पार करता हुआ वह चला जा रहा था| जब मेमने ने देखा कि रात हो रही है तो उसने घर लौट चलने का निश्चय किया|

बेचारा मेमना! वह तो रास्ता ही भूल गया था| फिर भी तो कहीं काटनी ही थी| चलते-चलते, मेमना किसी गीदड़ की गुफा तक जा पहुंचा| गीदड़ कहीं बाहर गया हुआ था| वह उस गुफा में घुस गया और उसने निश्चय किया कि जब तक उसके माता-पिता नहीं आ जाते, वह वहीं छिपा रहेगा|

अगली सुबह गीदड़ वापस आया| लेकिन गुफा के बाहर ही रुक गया| उसे लगा कोई अनजान जानवर उसकी गुफा में घुसा बैठा है| गीदड़ तेज आवाज में चिल्लाया, “मेरे घर में कौन छिपा बैठा है? बाहर आ जाओ, वरना बचोगे नहीं|”

मेमना समझदार था| उसने एक खूंखार जानवर की आवाज में जवाब दिया, “मै शेर का मामा हूं और मेरी दाढ़ी बहुत घनी, लंबी और मजबूत है| अपने भोजन में पचास बाघों को एक साथ खाता हूं| जा भाग, मेरे लिए भोजन का प्रबंध कर|”

गीदड़ की तो सिट्टी-पिट्टी गम हो गई| उसने सोचा कि इससे पहले कि यह भीषण जानवर बाघों की खोज में गुफा से निकले, उसे यहां से नौ-दो ग्यारह हो जाना चाहिए| और पलक झपकते ही गीदड़ जंगल के दूसरे छोर पर था, जहां उसे बाघों का सरदार मिला|

गीदड़ हांफते हुए बोला, “महोदय, मेरी गुफा में कोई अजीब-सा जानवर छिपा बैठा है| ऐसा लगता है की वह बहुत विशाल और बलशाली है| उसकी भयानक आवाज सुनकर ही मैंने यह अंदाजा लगा लिया है| उसने मुझे अपने खाने के लिए पचास बाघ लाने का आदेश दिया है|”

“हूं!” बाघ बोला| “कौन सा जानवर है, जो एक साथ पचास बाघ खा सके? मेरे साथ चलो| उसे मजा चखाऊंगा कि वह यहां से भाग खड़ा होगा|”

इस बीच बकरी और मेढ़ा अपने बेटे-मेमने को ढूंढ़ रहे थे| उसके नन्हें खुरों के निशानों पर चलते-चलते दोनों उसी गुफा तक जा पहंचे और उसे पुकारने लगे| मेमने ने गुफा से बाहर निकलकर गीदड़ वाला किस्सा सुनाया| तभी उन्होंने दूर से ही गीदड़ और बाघ अपनी ओर आते हुए देखा|

“अब हम भटक तो गए ही हैं,” मेमने का पिता बोला| “फिर भी कोई तिकड़म लगाते हैं|” तीनों ने मिलकर एक योजना बनाई और फिर गुफा में जाकर बैठ गए| जब बाघ गुफा के पास पहुंचा तो बकरी ने मेमने के कान जोर से उमेठे| मेमना ऊंची आवाज में मिमियाने लगा|

“बच्चा रो क्यों रहा है?,” पिता चिल्लाया|

“वह खाने में बाघ मांग रहा है,” बकरी बोली| “हम जब से इस जंगल में आए हैं, तब से इसने हाथी, भालू और भैसे तो खाए, पर बाघ नहीं मिला|”

“हां, हां,” मेमने का पिता एक विशाल जानवर की आवाज में बोला| “मैंने गीदड़ को पचास बाघ लाने के लिए कहा है| तुम बाहर जाकर देखो, वह आया या नहीं|”

इतना सुनकर बाघ के तो होश उड़ गए| वह किसी बड़े, भयंकर जानवर के बच्चे द्वारा बड़े-बड़े हाथी निगलने की कल्पना करने लगा कि उसकी मृत्यु भी निश्चित है| ऐसा सोचकर बाघ वहां से भाग खड़ा हुआ|

गीदड़ भी उसके पीछे भागने लगा| डर के मारे गीदड़, बाघ के पीछे जितना तेज भाग रहा था, बाघ उतना ही डर रहा था कि गीदड़ उस भयंकर जानवर के भोजन का प्रबंध कर रहा है|

जब दूसरे बाघों को इस घटना का पता चला तो सब उस जंगल से भाग खड़े हुए| गीदड़ों ने सोचा कि उन राक्षसों को खाने के लिए बाघ न मिले तो वे उन्हें ही चबा डालेंगे| इसलिए गीदड़ भी अपने परिवार और मित्रों सहित वहां से चलते बने| अब मेमना जंगल में घुमने के लिए स्वतंत्र था, बाघों और गीदड़ों द्वारा खाए जाने का उसे डर जो नहीं था|