बुद्धिमान सरदार
एक बूढ़े व्यापारी की देखरेख में माल से लदी बैलगाडियों का काफ़िला रेगिस्तान में प्रवेश करनेवाला था| तभी एक व्यापारी दूसरे व्यापारी से बोला, ‘इस रेगिस्तान को पार करने के नाम से ही मुझे तो कपकपी छूटने लगती है|’
‘काश! हमारा सरदार कोई साहसी युवक होता| यह बूढ़ा सरदार तो मुझे फूटी आँख नही सुहाता|’ एक व्यापारी बोला|
‘मेरा भी यही ख्याल है|’ दूसरा व्यापारी बोला|
‘कुछ दिनों पूर्व हमारे डेरे पर जो समझदार और युवा व्यापारी आया था, हमें उसी के काफ़िले में शामिल हो जाना चाहिए था|’
‘ठीक कह रहे हो भाई, कितनी चतुराई से वह हमारे सरदार को चकमा देकर खुद पहले खिसक लिया| अब तक तो वह रेगिस्तान पार भी कर चुका होगा|’ पहला व्यापारी बोला|
उधर काफ़िले के सरदार ने बैलगाड़ी हाँकनेवाले से कहा, ‘पानी तो भरपूर रखा है न?’
हाँ, हुजूर सभी मशकें (चमड़े का बड़ा थैला जिसमे पानी भरा जाता है) भरी है|’
गाड़ीवान ने कहा, ‘सारे रास्ते हमें खुदे हुए कुँए मिले| पता नही किसने खोदे होंगे?’
‘नगर में मुझसे मिलने एक युवा व्यापारी आया था| शायद उसी ने खोदे होंगे| अब समझे तुम, उसके काफ़िले को मैंने अपने काफ़िले से पहले क्यों जाने दिया था?’ बूढ़ा सरदार मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोला, ‘कुँए खोदना मेहनत का काम है| ऐसे तपते रेगिस्तान को पार करते समय मैं अपने आदमियों को परेशान नही करना चाहता था|’
काफ़िले को संबोधित करते हुए सरदार ने आगे कहा, ‘रास्तेभर में अब हमें पानी कि एक-एक बूंद संभालकर रखनी होगी| रेगिस्तान को पार करने में अभी कई दिन लगेंगे| अच्छी तरह समझ लो, अब एक बूँद भी पानी नज़र नही आएगा|’
काफ़िला रेगिस्तान में प्रवेश कर चुका था| कुछ दूर चलने के बाद उन्हें सामने से एक काफ़िला आता दिखाई दिया|
‘वे लोग इधर ही आ रहे हैं|’ गाड़ीवान ने कहा|
‘कौन होंगे वे लोग?’ बूढ़ा व्यापारी सोच में पड़ गया|
काफ़िला और नज़दीक आ गया| उनका युवा सरदार बूढ़े सरदार से बोला, ‘नमस्कार, महाशय| शायद आप आशी नगरी से आ रहे है?’
‘आपका अंदाजा सही है, हम लोग आशी से ही आ रहे है| लगता है आपके आदमी काफ़ी थके हुए है| आप जंगल में पहुँचेंगे तभी सबको आराम मिल पाएगा|’
‘किस जंगल की बात कर रहे है आप?’
‘रेत के टीलों के पार एक बड़ा जंगल है, वहाँ कई तालाब और झीलें भी है| ये कमल और जलकुंभी के फूल हमें वहीं मिले है| वहाँ बरसात हो रही है|’ दूसरे काफ़िला के युवा सरदार ने कहा|
युवा सरदार के गाड़ी हाँकनेवाले ने कहा, ‘सरदार, ये देखो कितना पानी ढो रहे है|’
‘इतनी बोझ से तो लदी गाड़ियाँ और भी धीरे चलेंगी| बर्तनों को खाली कर दो, आगे बहुत पानी है|’ युवा सरदार ने वृद्ध सरदार को सुझाव दिया|
‘सुझाव के लिए शुक्रिया, दोस्त| पर मैं पानी रखना ही उचित समझता हूँ|’ वृद्ध सरदार ने विनम्रता से कहा|
हमें क्या है, ज़रूर रखो- तुम्हारी मर्जी|’ युवा सरदार ने मुहँ बनाते हुए कहा, ‘तुम्हारी जगह अगर मैं होता तो बोझा हल्का कर लेता| क्योंकि जितनी जल्दी रेगिस्तान पार कर लो, उसी में भलाई है|’ युवा सरदार ने इतना कहकर विदाई ली|
‘ठीक ही तो कह रहे है| पानी से भरे बर्तनों के कारण ही तो काफ़िला इतना धीमे चल रहा है|’ एक व्यापारी ने कहा|
‘जब आगे झीलें है तो हम पानी क्यों ढोएँ?’ एक अन्य व्यापारी ने कहा|
बूढ़े सरदार ने सबको संबोधित करते हुए कहा, ‘वे लोग नरभक्षी दानव थे| चालाकी से हमारा पानी फिंकवा देना चाहते थे ताकि हम उनका आसानी से शिकार बन जाएँ| ये बात अच्छी तरह से समझ लो कि आगे न कोई जंगल है और न ही कोई तालाब| गाड़ियों में बैठो और आगे बढ़ो|’
काफ़िला फिर आगे बढ़ने लगा|
‘नरभक्षी दानव! वाह, क्या बात गढ़ी है बूढ़े ने| थोड़ी देर बाद कहेगा कि ये हमारे बैल नही, बल्कि राक्षस है|’ एक व्यापारी कह उठा|
‘काश! हम भी उसी नौजवान सौदागर के काफ़िले में चले गए होते|’ दूसरे ने कहा|
‘अब मुझसे क्या कहते हो, वह युवा सरदार अक्लमंद था| वह भले यात्रियों को दानव कहने की मूर्खता कदापि न करता|’ कहकर तीसरे ने मुहँ बिचकाया|
अभी वह और कुछ कहना चाहते थे कि उनमें से एक की नज़र सामने पड़ी, ‘अरे! ये क्या है? यह तो मलबा जैसा लगता है|’
‘हे भगवान! ये तो किसी काफ़िले के लोगों का अस्थि-पंजर है|’ दूसरे ने आँखें फाड़कर कहा|
‘यह तो उसी नौजवान सौदागर का काफ़िला लगता है, जिसमें शामिल न होने पर हम परेशान हो रहे थे|’ तीसरे व्यापारी ने कहा|
‘हुजूर! क्या यह वही काफ़िला है जो हमारे आगे आया था?’ गाड़ी हाँकने वाले ने बूढ़े सरदार से पूछा|
‘हाँ, लगता तो वही है| दुष्टों ने इनके साथ भी शायद वही चाल चली होगी, जो वे हमारे साथ चलना चाहते थे| नरभक्षियों ने उन्हें मार डाला| देखो, चारों तरफ़ हड्डियाँ-ही-हड्डियाँ नज़र आ रही हैं|’ सरदार ने दुखी स्वर में कहा|
‘म…मैं बहुत शर्मिंदा हूँ सरदार, मुझे माफ़ कर दो| अभी भी मुझे विश्वास नही हो रहा कि वे नरभक्षी दानव ही थे|’
‘इसमें तुम्हारा कोई दोष नही है| वे किसी को भी मूर्ख बना सकते है|’
‘आपको उन पर शक कैसे हुआ सरदार?’ दूसरे व्यापारी ने पूछा|
‘उन्होंने कहा था कि आगे भारी बरसात हो रही है और जंगल पास ही है| लेकिन जब मैंने आकाश की ओर देखा तो बादल का एक भी टुकड़ा दिखाई नही दिया, तभी मुझे शक हो गया| मैंने उनकी आँखों को देखा, जो दानवों जैसी गोल और लाल थी| मुझे समझते देर नही लगी कि वे दानव ही हैं| ज़रूर वे उन टीलों की चोटियों से नज़र रखे हुए होंगे|’ कहकर बूढ़े सरदार ने काफ़िले को आगे बढ़ने का आदेश दिया|
उधर टीलों पर दानवों का सरदार अपने साथियों से कह रहा था, वे लोग इधर ही देख रहे है| हमारी चाल में वे नही फँसे| मैं समझ रहा था कि उसके आदमी बगावत कर देंगे और पानी फेंक देंगे| पर अब उम्मीद करना बेकार है, वापस चलो|’ कहकर दानवों का सरदार अपने साथियों को लेकर दूसरे रास्ते चला गया|
उधर बूढ़े सरदार का काफ़िला अपनी मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा था|
शिक्षा: किसी की कहे पर अमल करने से पहले सत्यता की परख कर लेनी चाहिए| जैसे हर चमकती चीज़ सोना नही होती, उसी प्रकार हर सुनी बात सत्य नही होती| दूसरे, बड़े-बुजुर्गों की नसीहत पर अमल करने से कभी भी हानि नही होती|