बंधन
एक कुम्हार के पास कई गधे थे| रोज़ सुबह जब वह गधों को मिट्टी लाने के लिए ले जाता तो एक जगह कुछ देर के लिए आराम करता था| वह सभी गधों को पेड़ से बाँध देता और खुद भी एक पेड़ के नीचे लेट जाता|
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एक दिन जब वह मिट्टी लेने जा रहा था तो गधों को बाँधने वाली रस्सी छोटी पड़ गई| विश्राम स्थल पर उसने सभी गधे बाँध दिए लेकिन एक गधा रह गया| वह उसका कान पकड़ कर बैठ गया| अब न कुम्हार आराम कर पा रहा था, न ही गधे को चैन मिल रहा था| तभी वहाँ से एक साधु गुज़रा| उसे जब कुम्हार की समस्या का पता चला तो वह बोला, ‘गधे को जहाँ रोज़ बाँधते हो वही ले जाकर झूठमूठ ही बाँधने का उपक्रम करो…गधा कही नही जाएगा|’
कुम्हार ने ऐसा ही किया| गधा सचमुच अपनी जगह स्थिर हो गया| कुछ देर आराम करने के बाद कुम्हार ने सभी गधों को खोल दिया और चलने लगा| लेकिन जिस गधे को बाँधा ही नही था वह अपनी जगह से हिल नही रहा था| कुम्हार ने काफ़ी प्रयास किया लेकिन गधा टस-से-मस नही हुआ|
संयोगवश वही साधु उसी रास्ते से वापस आ रहा था| उसे रोककर कुम्हार ने कहा, ‘मुनिवर! यह गधा तो अपनी जगह से हिल ही नही रहा है|’
‘क्या यह वही गधा है, जिसे झूठमूठ ही बाँधा था?’ साधु ने पूछा|
‘जी मुनिवर!’
‘मुर्ख प्राणी! अब इस गधे को खोलो भी तो|’ साधु ने कहा|
‘पर मुनिवर यह तो खुला ही हुआ है|’
‘नही! यह गधा वैसे ही बंधा हुआ है जैसे तूने इसे बाँधने का उपक्रम किया था| वैसा ही झूठा उपक्रम इसे खोलने का कर|’ साधु ने कहा|
कुम्हार ने वैसा ही किया|
गधा चल पड़ा|
कुम्हार समझ गया कि गधा वास्तव में मन से तो बंधा ही हुआ था और जब तक उसे खोला न जाता तो वह अपनी जगह से हिलता कैसे|
कथा-सार
एक ही कार्य या उपक्रम को नित्य करते-करते वैसा ही करते रहने का अभ्यास हो जाता है| आपको यदि किसी नियत समय पर सवेरे उठने की आदत है तो नित्य उसी समय आँख खुल जाती है| ऐसा ही गधे के साथ भी हुआ- उसे रोज़ बाँधे जाने की आदत थी| झूठमूठ बाँधने पर भी उसने खुद को बंधा हुआ ही समझा और झूठमूठ खोलने पर ही आगे बढ़ने को राज़ी हुआ|