Homeशिक्षाप्रद कथाएँबालिका की वाणी

बालिका की वाणी

भगवान बुद्ध श्रावस्ती में ठहरे हुए थे। वहां उन दिनों भीषण अकाल पड़ा था। यह देखकर बुद्ध ने नगर के सभी धनिकों को बुलाया और कहा, ‘नगर की हालत आप लोग देख ही रहे हैं। इस भयंकर समस्या का समाधान करने के लिए आगे आइए और मुक्त हाथों से सहायता कीजिए।’ लेकिन गोदामों में बंद अनाज को बाहर निकालना सहज नहीं था। श्रेष्ठि वर्ग की करुणा जाग्रत नहीं हुई। उन्होंने उन अकाल पीडि़त लोगों की सहायता के लिए कोई तत्परता नहीं दिखाई।

“बालिका की वाणी” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

उन धन कुबेरों के बीच एक बालिका बैठी थी। भगवान बुद्ध की वाणी ने उसको झकझोर दिया। वह उठकर बुद्ध के सामने पहुंची और सिर झुका कर बोली, ‘हे प्रभु, मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं लोगों के इस दुख को हल्का कर सकूं।’ उस बालिका के ये शब्द सुनकर भगवान बुद्ध चकित रह गए। उन्होंने कहा कि बेटी जब नगर के सेठ कुछ नहीं कर पा रहे तो तुम क्या करोगी? तुम्हारे पास है ही क्या? तब हाथ जोड़कर लड़की बोली, ‘भगवन, आप मुझे आशीर्वाद तो दीजिए। मैं घर-घर जाकर एक-एक मुट्ठी अनाज इकट्ठा करूंगी और उस अनाज से मैं भूखों की मदद करूंगी। भगवन, जो मर रहे हैं वे भी तो हमारे ही भाई-बहन हैं। उनकी भलाई में ही हमारी भलाई है।’ इतना कहकर वह बालिका फूट पड़ी। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी।

भगवान बुद्ध अवाक रह गए। सारी सभा स्तब्ध रह गई। आंसुओं के बीच लड़की ने कहा, ‘बूंद-बूंद से घट भर जाता है। सब एक-एक मुट्ठी अनाज देंगे, तो उससे इतना अनाज इकट्ठा हो जाएगा कि कोई भूखा नहीं मरेगा। मैं शहर-शहर घूमूंगी, गांव-गांव में चक्कर लगाऊंगी और घर-घर झोली फैलाऊंगी।’ बालिका की वाणी ने धनपतियों के भीतर के सोते इंसान को जगा दिया। उन्हें बालिका की निर्मलता और सामाजिक सरोकार देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। फिर क्या था! अनाज के गोदामों के दरवाजे खुल गए और अकाल की समस्या जल्दी ही समाप्त हो गई।

घर का झग