बालक की दूरदर्शिता से चकित रह गए गांव वाले
एक बार एक गांव में सूखा पड़ा। सारे तालाब और कुएं सूख गए। तब लोगों ने एक सभा की। उस सभा में सभी ने एक स्वर में तय किया कि गांव के बाहर जो शिवजी का मंदिर है, वहां चलकर भगवान से वर्षा करने के लिए सामूहिक प्रार्थना करें। अगले दिन सुबह होते ही गांव के सभी लोग शिवालय की ओर चल दिए। बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष सभी जोश से भरे हुए जा रहे थे। इन सभी में एक बालक ऐसा था, जो हाथ में छाता लेकर चल रहा था। सभी उसे देखकर उसका उपहास उड़ाने लगे।
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पंडितजी ने कहा- अरे बावले! यह छाता क्यों उठा लाया? एक ग्रामीण ने विनोद किया। एक बुजुर्ग ने भी उससे पूछा- बेटा अभी न धूप है न बारिश। फिर ये छाता क्यों उठा लाया? बालक ने उत्तर दिया- बाबा अभी तो कुछ नहीं है, किंतु हम सभी भगवान के पास प्रार्थना करने जा रहे हैं कि वर्षा कर देना। भगवान हमारी प्रार्थना सुनकर वर्षा तो करेगा ही न, तो जब हम गांव वापस लौटेंगे और वर्षा होगी, तब इसकी जरूरत पड़ेगी। बालक की बात सुनकर सभी हंस पड़े, किंतु बुजुर्ग ने गंभीर होकर कहा- बात तो तूने बहुत ही पते की कही है।
भगवान पर तेरा अटूट विश्वास है। यदि वर्षा हुई भी तो तेरी प्रार्थना सुनकर ही होगी। गांव के सभी लोगों ने मंदिर में पहुंचकर प्रार्थना की और लौट पड़े किंतु आधे रास्ते में ही वर्षा जोरों से शुरू हो गई। बालक ने अपना छाता तान लिया और बाकी सभी भीगते हुए घर लौटे। भोजन-भोजन कहने और भोजन करने में बहुत अंतर है। केवल ईश्वर-ईश्वर चिल्लाने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसके लिए हमें अनुभव, आभास और अभ्यास करना चाहिए तथा आस्था को दृढ़ बनाना चाहिए।