भक्ति के वश भगवान्
भगवती अन्नपूर्ण काशीपुरी में आ चुकी थीं| यहीं पर उन्होंने भगवान् शंकर से पूछा-‘भगवन् आप अपने भक्तों को किस उपाय से दर्शन देते हैं और उनके वश में हो जाते हैं?’
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भगवान् ने बताया कि ‘इसके लिये भक्ति से बढ़कर और कोई उपाय नहीं है| ब्रम्हा मेरे अनुपम भक्त हैं| उनकी भक्ति के कारण मैं उन्हें प्रत्येक कल्प में दर्शन देकर उनकी समस्या का समाधान किया करता हूँ|’
श्वेतलोहित नाम का कल्प था| ब्रम्हा जागकर सृष्टि-रचना के ज्ञान के लिये ध्यान कर रहे थे| तब भगवान् शंकर ने ‘सद्योजात-रूप’ में उन्हें दर्शन दिया|सद्योजात भगवान् ने ब्रम्हा को ‘सद्योजात’ आदि मन्त्र देकर उन्हें सृष्टि-रचना के योग्य बनाया|
तीसवें कल्प में ब्रम्हा के जीवसुलभ अज्ञान को हटाने के लिये भगवान् शंकर ‘वामदेव’ के रूप में आये| इस बार विरजा, विवाहु, विशोक और विश्वभावन-ये चार कुमार थे| सभी कुमारों के वस्त्र, चन्दन, भस्म और माला रक्त वर्ण के थे| वे लोग संसार के ऊपर अनुग्रह करते रहते थे|
एकतीसवें कल्प का नाम पीतवासा है| इसमें ब्रम्हा पीले वस्त्र, पीला चन्दन और पीली माला धारण किये थे| इस बार भी ब्रम्हा सृष्टि-रचना के लिये जब व्यग्र होने लगे, तब भक्तवत्सल भगवान् ने ‘तत्पुरुष’ के रूप में उन्हें दर्शन दिया और ‘तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्’-इस गायत्री-मन्त्र का उपदेश किया| इस मन्त्र के अदभुत अर्थ से ब्रम्हा सृष्टि की रचना में समर्थ हुए| तत्पुरुषदेव के पार्श्वभाग से जो चार कुमार प्रकट हुए थे, वे भी पीले वस्त्र, पीले चन्दन और पीली माला पहने हुए थे| उनके मुख और केश भी पीले थे|
बत्तीसवें कल्प में, जिसका नाम असित था, ब्रम्हा सृष्टि के लिये जब चिन्तित हुए, तब भगवान् ने उन्हें ‘अघोर’ रूप में दर्शन दिया| उनके वस्त्र, यज्ञोपवीत और माला काले (नील वर्ण के) थे| भगवान् अघोर के पार्श्वभाग से चार कुमार-कृष्ण, कृष्णशिख, कृष्णाय और कृष्णवस्त्रधृत प्रकट हुए| ये भी काले थे और काले ही वस्त्र आदि धारण किये थे| भगवान् ने ब्रम्हा को अघोर-मन्त्र देकर सृष्टि की प्रक्रिया का उद्घाटन किया|
विश्वरूप नामक कल्प में भगवान् ने ‘ईशान’ रूप में दर्शन देकर ब्रम्हा को कृतार्थ किया| इस बार ब्रम्हा को भगवान् शिव की शक्ति रूप के दर्शन प्राप्त हुए| इस तरह भगवान् श्रद्धा और भक्ति के वश में होकर भक्त की सहायता किया करते हैं|