बहादुर बेटर
दुर्गापुर के निकट जंगल में कुछ बटेरें रहती थी| उसी जंगल में हाथियों का समूह भी चरने आया करता था| एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय हाथी उस समूह का मुखिया था|
एक दिन एक मादा बटेर ने अंडे दिए| वह नर बटेर से बोली, ‘बच्चे निकलने तक अण्डों की सुरक्षा ज़रूरी है|’
‘कहती तो तुम ठीक हो| पर तुम्हें इनकी कड़ी निगरानी रखनी होगी| तुम्हें पता ही है कि हाथी कैसे मस्ती में झूमते हुए आते है|’
समय बीतने पर अंडों से बच्चे निकले| एक दिन हाथियों का समूह उस ओर आ निकला जिधर बटेर के नवजात बच्चे थे|
मादा बटेर बोली, देखो! हाथी इधर ही आ रहे है| अब मैं क्या करूँ? इनके पाँवों में पड़कर भीख माँगनी पड़ेगी|’
फिर वह हाथियों के मुखिया के पास पहुँची|
‘हे गजराज! मेरे नन्हें बच्चे ख़तरे में है| तुम्हारा समूह जंगल में चरने आया है| उनके पैरों से मेरे बच्चे कुचलकर मर जाएँगे| मैं तुम्हारे पास बड़ी उम्मीद लेकर आया हूँ| मुझ पर रहम खाइए|’
‘निर्भय रहो! तुम्हारे बच्चों का कुछ नही बिगड़ेगा|’ गजराज ने कहा|
इसके बाद गजराज घोंसले के ऊपर खड़ा हो गया और बाकी हाथी अपना पेट भरने की जुगाड़ में लग गए| सबका पेट भर गया तो वह भी चलने लगा| जाते-जाते वह बोला, ‘एक मदमस्त हाथी है, वह भी शायद इधर ही आए|’
‘तो मैं क्या कर पाऊँगी|’ मादा बटेर बोली, ‘मैं तो बहुत छोटी हूँ|’
‘उससे विनती करना और बच्चों की खैर मनाना|’ इतना कहेने के बाद गजराज वहाँ से चला गया|
गज समूह के जाने के कुछ देर बाद वह मस्त हाथी पहुँचा| मादा बटेर ने ज़रा भी देर नही की और वह उस हाथी के पैरों में पड़कर बोली, ‘गजराज! मैं अपने बच्चों के प्राणों की भीख माँगती हूँ| मुझ पर रहम खाओ|’
‘तेरी इतनी हिम्मत की तू मेरे सामने आई?’ हाथी क्रोधित हो उठा और घोंसले पर झपट पड़ा| उसने बच्चो को भी उछाल दिया, ‘ले हो गई तेरे निकम्मे बच्चों की सफ़ाई|’ यह कहकर वह मदमस्त होकर दूसरी तरफ़ निकल गया|
मादा बटेर बैठकर विलाप करने लगी| लेकिन कुछ देर बाद उसने मन-ही-मन प्रण किया, ‘एक दिन मैं इस हाथी के गर्व तोड़कर रहूँगी| उसको दिखा दूँगी कि मुझमें कितनी शक्ति है|’
फिर कुछ विचार कर वह एक कौए के पास गई और उसे आपबीती सुनाते हुए बोली, ‘अब तुम उस निर्दयी हाथी को ढूँढ़कर उसकी दोनों आँखें निकाल लो, तभी मुझे शांति मिलेगी|’
‘मुझ पर भरोसा रखो| उसे इसका दंड अवश्य मिलेगा|’ कौए ने मादा बटेर को ढाँढ़स बँधाया|
कौए का समर्थन पाकर वह मादा बटेर चींटी के पास गई ओर सारी कहानी बताकर उससे मदद माँगी|
‘बच्चो के बारे में सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ|’ चींटी ने गमगीन स्वर मे कहा|
‘मैं इसलिए तुम्हारे पास आई हूँ| उस निर्दय हाथी को ऐसा पाठ पढ़ाया जाए जिसे वह जिंदगीभर याद रखे|’
‘कैसे?’ चींटी ने विस्मित मे स्वर में पूछा|
‘मेरा दोस्त कौआ उसकी आँखे निकालेगा| तब उन आँखो के गड्ढों में तुम अंडे दे देना|’ मादा बटेर ने कहा|
‘बात पते की है| अंडो से बच्चे निकलेंगे तो उसे काटेंगे|’ चींटी ने हाँ मे हाँ मिलाई|
उसके बाद बटेर ने तालाब किनारे पहुँचकर मेंढ़क को आवाज़ लगाई, ‘मित्र, सब काम छोड़कर बाहर आ जाओ|’
मेंढ़क ने पानी से सिर निकाला और बोला, ‘क्या बात है?’
‘एक दुष्ट हाथी ने मेरे बच्चों को मार डाला है|’ यह कहकर उसने आपबीती सुना डाली, ‘अब मैं मित्रों की मदद से उसे दंड दूँगी|
‘मैं तुम्हारा साथ देने के लिए तैयार हूँ|’ मेंढ़क ने उसे तसल्ली देते हुए कहा|
दोनों चल पड़े| रास्ते में बटेर ने उसे अपनी योजना बताई, ‘चींटियों के बच्चे काटेंगे तो अंधा हाथी तालाब की तरफ़ भागेगा कि पानी मिल जाए और अपनी पीड़ा मिटाए| तब तुम्हें यह करना होगा…|’
फिर एक दिन योजनानुसार कौए ने हाथी पर झपट्टा मारा और उसकी आँखे निकालकर उड़ गया|
‘आह!’ हाथी के मुख से कराह निकली| तभी चींटी ने आँखों के गड्ढों में अंडे दे दिए| उसके बाद चींटी के बच्चे निकले तो उन्होंने काटना आरंभ कर दिया|
हाथी जब व्याकुल होकर पानी की खोज़ में भागा| तभी मेंढ़क पास की एक चट्टान पर बैठकर टर्र-टर्र करने लगा|
‘उधर मेंढ़क टर्रा रहा है, पानी वही कहीं होगा| मुझे उधर ही चलना चाहिए|’ यह सोचकर हाथी चट्टान के सिरे पर जा पहुँचा|
मेंढ़क कुछ नीचे उतरकर ज़ोर से टर्राया|
हाथी उसकी टर्राहट का पीछा करते-करते चट्टान से नीचे जा गिरा और मर गया|
बाद में कौआ, चींटी, मेंढ़क और वह मादा बटेर एक जगह मिले|
‘मैं समझती हूँ कि दुर्बल और असहाय प्राणियों को सतानेवाले बलशाली जीवों को दुष्ट हाथी की कथा से शिक्षा मिलेगी|’
इतना कहकर मादा बटेर घोंसले की ओर रवाना हो गई और शांति से रहने लगी|
शिक्षा: हाथी ने शक्ति के मद में चूर होकर बटेर का आशियाना उजाड़ दिया| शायद वह नही जानता था कि छोटी-सी छेनी पहाड़ का सीना चीर देती है| समझदार बटेर ने अपने मित्रों की मदद से हाथी का अंत कर दिया| अतः दुर्बल समझकर किसी पर अत्याचार करना ठीक नही|