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बदसूरती काम आई

एक जंगल में अन्य सभी वृक्ष तो सुंदर व सीधे खड़े हुए थे लेकिन एक वृक्ष ऐसा था जिसका तना भी टेढ़ा था और शाखाएँ भी टेढ़ी-मेडी थी| इसलिए वह कुबड़ा वृक्ष कहलाता था| कुबड़ा होने के कारण न राहगीर ही उसकी छाया में बैठते थे और न पक्षी ही उस पर घोंसला बनाते थे| जबकि अन्य वृक्षों का सभी उपयोग करते थे|

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अपने प्रति लोगों का ऐसा व्यवहार देखकर कुबड़े वृक्ष को दुख होता| वह अन्य वृक्षों को देखकर सोचा करता, ‘मेरे भाई-बंधु कितने सुंदर है| काश! मैं भी ऐसा ही होता| ईश्वर ने मेरे साथ पक्षपात किया है|’

एक दिन उसी जंगल में एक लकड़हारा आया| टेढ़े वृक्ष को देखकर वह मन-ही-मन बोला, ‘यह पेड़ तो मेरे लिए बेकार है|’

लकड़हारे ने सुंदर व तने हुए वृक्षों को ही पसंद किया और देखते-देखते उन्हें काटकर ज़मीन पर डाल दिया|

यह देख कुबड़े वृक्ष की आँखें खुल गई| वह सोचने लगा कि अच्छा ही हुआ जो ईश्वर ने मुझे ऐसा बनाया| यदि मैं भी इनकी तरह सुंदर और सीधा होता तो आज मेरा भी जीवन समाप्त हो जाता|

वह ईश्वर से क्षमा-याचना करते हुए कहने लगा, ‘हे ईश्वर! मैंने आपके विषय में न जाने क्या-क्या उल्टा-सीधा कह दिया, आप मुझ निर्बुद्धि को क्षमा करे| आप जो कुछ करते है अच्छा ही करते है| आपके किए में ही सबका हित है| आप सबके भले-बुरे को जानते है|’


कथा-सार

ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है| उसकी करनी में खोट निकालना ठीक नही| यह ठीक है कि कुबड़ा वृक्ष अपनी बदसूरती पर नाखुश था, लेकिन जब उसने सीधे-सुंदर वृक्षों का हश्र देखा तो अपनी बदसूरती ही उसे खूबसूरती लगने लगी| याद रखे! ईश्वर की हर रचना सुंदर…केवल सुंदर ही होती है|