बदसूरत मेंढक
बलसोरा के बादशाह का राज्य धनधान्य से पूर्ण था | किसी भी प्रकार की कोई कमी न थी | उनकी एक प्यारी-सी बेटी थी जिनी | उसके काले घुंघराले बाल, घनी पलकें, तीखे नयन-नक्श, हर किसी को अपनी ओर आकृष्ट करते रहते थे |
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अनेक राजकुमार राजकुमारी जिनी का हाथ थामने का प्रयास कर चुके थे | पर जिनी सबका मजाक उड़ाती रहती थी | वह किसी में कोई कमी निकाल देती, किसी में कोई |
जिनी के पिता उसके जन्मदिन पर हर वर्ष कोई न कोई सुंदर उपहार दिया करते थे | जिनी को उन उपहारों में सोने की सुंदर हीरों जड़ी गेंद बेहद प्रिय थी |
खाली वक्त होने पर जिनी अपने महल के बाहर सुंदर बगीचे में गेंद खेल कर मन बहलाया करती थी |
एक दिन जिनी गेंद को जोर-जोर से उछालकर खेल रही थी | जैसे ही सूर्य की किरणों में गेंद चमकती थी, उसकी रोशनी चारों ओर फैल जाती थी | उस रोशनी को देखने में जिनी को बड़ा आनंद आ रहा था |
एक बार गेंद अचानक जोर से उछली और बगीचे के बीचोंबीच बने तालाब में जा गिरी | गेंद पहले लिली के पत्ते पर रुकी | जिनी गेंद पकड़ने के लिए दौड़ी, पर तब तक गेंद पानी में जा चुकी थी | सोने की गेंद होने के कारण गेंद पानी में डूब गई |
जिनी एकदम उदास हो गई | उसने अपना हाथ पानी में बढ़ाने की कोशिश की, पर गेंद का कहीं अता-पता नहीं था | तभी अचानक उसे एक फूल पर बैठा एक हरा-सा बदसूरत मेंढक दिखाई दिया |
जिनी को रोना आने लगा था कि अचानक मेंढक बोला – “यदि तुम मेरी बात मानो तो मैं तुम्हारी गेंद निकाल सकता हूं |”
जिनी तो अपनी गेंद के लिए पागल-सी हुई जा रही थी, बोली – “मैं तुम्हारी सारी बातें मानने को तैयार हूं | पर ऐ मेंढक, पहले तुम मेरी गेंद बाहर निकाल दी |”
मेंढक बोला – “ऐसी जल्दी भी क्या है ? पहले मेरी बात तो सुनो | मैं तालाब में रहते-रहते थक गया हूं | यदि मैं तुम्हारी गेंद निकाल दूं तो मैं तुम्हारी सोने की थाली में तुम्हारे साथ खाना खाऊंगा |”
जिनी जल्दी में बोली – “मुझे मंजूर है, पर मेरी गेंद तो जल्दी निकालो |”
“तुम्हें मेरी दो शर्तें और माननी होंगी | मैं तुम्हारे चांदी के गिलास में ही पानी पीऊंगा और तुम्हारे मखमली बिस्तर पर ही सोऊंगा | यदि तुम्हें मंजूर हो तो बताओ | मैं तुभी तुम्हारी गेंद निकालूंगा |” मेंढक बोला |
जिनी ने किसी भी बात को ध्यान से सुने बिना स्वीकृति दे दी | मन में सोचने लगी कि मेंढक कुछ पागल लगता है | मेरे हां करने से क्या फर्क पड़ता है | मेंढक चन्द क्षणों में चमकीली गेंद बाहर ले आया |
जिनी इतराती हुई बिना मेंढक का धन्यवाद किए गेंद लेकर चल दी | वह घर के अंदर आकर गेंद रखकर अपने माता-पीता के साथ खाना खाने बैठ गई |
संगीत की मीठी-मीठी धुन बज रही थी, सब लोग मद्धम रोशनी में खाना खाने में व्यस्त थे | मेहमान भी मधुर धुनें सुनते हुए भोजन का आनंद ले रहे थे | जिनी बादशाह व रानी के साथ मेज पर बैठी सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन खाने लगी | जिनी के पीछे खड़े नौकर उसके हाथ-पैर साफ कर उसकी खाने में मदद करने लिए उसके पीछे खड़े हो गए |
अचानक दरवाजे पर ‘हांप-हांप’ की आवाज सुनाई दी | सभी का ध्यान उस आवाज की ओर आकृष्ट हो गया | जिनी मेंढक को बिल्कुल भूल चुकी थी | उसने नौकर को दरवाजे पर जाकर देखने का आदेश दे दिया |
मेंढक ने नौकर से कहा – “मुझसे राजकुमारी जिनी ने अपने साथ भोजन करने का वादा किया है, अत: मैं भोजन करने आया हूं |” मेंढक की बात सुनकर नौकर हत्प्रभ रह गया |
नौकर ने जिनी से आकर कहा तो जिनी गुस्से में बोली – “नहीं, मैं किसी मेंढक को नहीं जानती, दरवाजा बंद कर दो |” नौकर दरवाजा बंद करने जाने लगा तो बलसोरा के बादशाह बोले – “प्यारी जिनी, याद करो, कहां तुमने किसी मेंढक से वादा तो नहीं किया | हम शाही लोग किसी से वादा करके तोड़ते नहीं |”
पिता की बात सुनकर जिनी घबरा गई | उसने देखा सभी मेहमानों की निगाहें उसी पर टिकी थीं | जिनी ने चुपचाप मेंढक को अंदर लाने की स्वीकृति प्रदान कर दी |
मेंढक बोला – “जिनी, मैं तुम्हारे पास बैठकर भोजन करूंगा |” जिनी ने मेंढक को अपनी कुर्सी पर बिठा लिया | तो मेंढक बोला – “तुमने मुझे अपनी थाली में भोजन कराने का वादा किया था, मैं तुम्हारी थाली में भोजन करूंगा, मुझे मेज पर पहुंचा दो |”
मेंढक की बात सुनकर जिनी को बहुत गुस्सा आ रहा था, परंतु वह अपने पिता की निगाह देखकर चुप हो गई | उसने मेंढक को चुपचाप थाली के पास बिठा दिया | मेंढक के भोजन शुरू करते ही जिनी ने अपने हाथ रूमाल से पोंछ लिए | उसे बदसूरत मेंढक से बेहद चिढ़ हो रही थी |
जिनी ने अपने खूबसूरत चांदी के गिलास में पानी पीना शुरू कर दिया | मेंढक बोला – “जिनी मुझे भी अपने गिलास में पानी दो न, मुझे बड़ी प्यास लगी है |” मेंढक की बात सुनकर जिनी ने गिलास अपनी तरफ खींच लिया और गुस्से से मेंढक को देखने लगी |
इस पर मेंढक बोला – “गुस्सा क्यों होती हो जिनी, तुम्हीं ने तो वादा किया था कि अपने चांदी के गिलास में मुझे पानी पिलाओगी |” जिनी ने खिसियाते हुए गिलास मेंढक की तरफ बढ़ा दिया और चुपचाप उठ कर चल दी |
मेंढक के मुंह से जिनी बार-बार अपना नाम सुनकर जली-भुनी जा रही थी | तभी मेंढक बोला – “अपना तीसरा वादा भूल गईं क्या ? मुझे भी बड़ी नींद आ रही है, अपने साथ मुझे भी ले चलो |”
जिनी गुस्से में बोली – “नहीं, कभी नहीं |” तभी बादशाह प्यार से जिनी से बोले – “प्यारी बेटी, तुम्हें वादा करने से पहले सोचना चाहिए था | अब वादा किया है तो मेंढक को भी अपने साथ ले जाओ |”
जिनी के पीछे ‘हांप-हांप’ कर उछलता हुआ मेंढक भी चल दिया | दो सीढ़ी ऊपर जाने के बाद ही मेंढक बोला – “मैं बहुत थक गया हूं, मुझे भी ले चलो उठाकर जिनी |” जिनी ने चुपचाप मेंढक को उठा लिया और सोचने लगी कि इसे खाली कमरे में छोड़ दूंगी |
थोड़ा आगे जाकर जिनी ने मेंढक को एक खाली कमरे में बंद कर दिया और अपना कमरा अंदर से बंद करके सोने चली गई | जिनी अब निश्चिंत थी कि मेंढक को दूसरे कमरे में बंद कर दिया है | इसी निश्चिंतता के कारण जिनी को लेटते ही नींद आ गई |
पर कुछ ही मिनटों बाद दरवाजे पर ‘हांप-हांप’ की ठक-ठक सुनाई दी | जिनी की आंख खुल गई और वह डर गई, कहीं उसके पिता को मेंढक की आवाज सुनाई न दे जाए, उसने चुपचाप दरवाजा खोल दिया और जमीन पर पड़े कालीन पर मेंढक को सो जाने को कह कर स्वयं पलंग पर लेट गई |
पर मेंढक जिनी को तंग किए जा रहा था और जिनी झुंझलाते हुए भी कुछ करने में असमर्थ थी | सुलाना चाहती हो | अपना वादा भूल गईं क्या ?”
“वादा, वादा, वादा…” जिनी गुस्से में भर उठी | उसने मेंढक को उठाकर जोर से खिड़की के बाहर फेंक दिया, पर यह क्या, वह पलट भी न पाई थी कि उसने देखा कि बगीचे में गिरते ही मेंढक राजकुमार बन गया है | चांदनी में राजकुमार का यौवन और भी निखर रहा था |
राजकुमार को देखकर जिनी ठगी सी रह गई, ऊपर से ही बोली – “तुम कौन हो ? मैं तुमसे मिलना चाहती हूं |” राजकुमार ने जिनी को नीचे आने का इशारा किया |
जिनी मेंढक से जितना ऊब चुकी थी, राजकुमार के पास जाने को उतना ही व्याकुल हो उठी | वह राजकुमार के पास पहुंची तो राजकुमार से मेंढक के बारे में पूछा, राजकुमार ने मेंढक के बारे में बताया |
“मैं भी तुम्हारी तरह सिर्फ सुंदर चीजों से प्यार करता था | एक बार मैं शिकार पर गया था कि जंगल में मुझे एक बदसूरत परी मिली | मैं उसे देखकर हंस पड़ा | बस, उस बदसूरत परी ने मुझे श्राप दे दिया कि तुम जिस सुंदरता पर घमंड करते हो वह बदसूरती में बदल जाएगी और तुम हमेशा के लिए एक बदसूरत मेंढक बन जाओगे |”
मैंने परी से बहुत क्षमा-याचना की तो परी ने मुझे श्रापमुक्त होने का तरीका बता दिया कि यदि कोई खूबसूरत राजकुमारी किसी चांदनी रात में तुम्हें गुस्से में मारेगी तो तुम पुन: पुराने स्वरूप में आ जाओगे | यदि मैं इस प्रकार की शर्तें न रखता और रात में तुम्हारे बिस्तर पर सोने की जिद न करता तो हरगिज रात में मुझे गुस्से से मारने वाली तुम जैसी राजकुमारी न मिलती और में श्रापमुक्त न होता |
बगदाद के राजकुमार मोबारेक की बात सुनकर राजकुमारी जिनी का दिल पसीज उठा और वह उसे इज्जत के साथ महल में ले आई | सुबह को उसका परिचय अपने माता-पिता से करवया | फिर बहुत धूमधाम से राजकुमारी जिनी और राजकुमार मोबारेक की शादी हो गई |