अर्जुन का प्रतिशोध और द्रोण की मृत्यु
प्रातःकाल होते ही अर्जुन अपने रथ पर सवार हो गए| वे पिछली रात प्रिय पुत्र अभिमन्यु को जिस प्रकार वीरगति प्राप्त हुई थी, उसे याद कर, रोते रहे थे| केवल जयद्रथ को सूर्यास्त से पूर्व मृत्युदंड देने की प्रतिज्ञा ने उन्हें जीवित रखा हुआ था|
“अर्जुन का प्रतिशोध और द्रोण की मृत्यु” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
कौरवों को अर्जुन की शपथ का समाचार मिल चूका था| उसे सुनकर सिंधु नरेश जयद्रथ भयभीत था| वह उस दिन युद्ध नहीं करना चाहता था, परन्तु दुर्योधन ने दिलासा दिलाया कि उसकी पूर्णरूप से रक्षा की जाएगी, “तुम भयभीत न हो जयद्रथ, हम सब तुम्हारे साथ हैं|”
द्रोण, उनके पुत्र अश्वत्थामा और दुर्योधन ने कुशलता से जयद्रथ की रक्षा की| अर्जुन ने द्रोण के साथ युद्ध किया, परन्तु अर्जुन अपने गुरु को परास्त नहीं कर सके| अर्जुन ने दुर्योधन से युद्ध किया, परन्तु द्रोण ने उसे एक ऐसा वस्त्र दिया था जिसे किसी बाण से भेदा नहीं जा सकता था| ऐसा लगता था कि पांडव कभी भी कौरवों को पराजित नहीं कर पाएँगे| सूर्यास्त होनेवाला था और अभी तक अर्जुन की शपथ पूरी नहीं हुई थी| श्रीकृष्ण चिंतित हो उठे| उन्होंने अर्जुन की सहायता करने के लिए युक्ति से विशाल काले बादलों की धुंध पृथ्वी से आकाश तक, सूर्य के सामने, फैला दी| कौरवों को सूर्यास्त का भ्रम हुआ और उन्होंने समझा कि जयद्रथ की मृत्यु का खतरा अब नहीं रहा| परन्तु अर्जुन ने युद्ध जारी रखा और दुर्योधन के शरीर के उस भाग को लक्ष्य बनाया जो कवच से ढका हुआ नहीं था| वे तब तक दुर्योधन पर बाणों की बौछार करते रहे जब तक कि वह अर्धमूर्छित अवस्था में, असहनीय पीड़ा से कराहता हुआ, जयद्रथ के सामने से हट नहीं गया|
अर्जुन ने अब अपना लक्ष्य जयद्रथ के सिर पर साधा| एक ही झटके से उसका सिर धड़ से अलग हो गया| और इस प्रकार अर्जुन द्वारा ली गई शपथ पूर्ण हुई|
कौरवों और पांडवों में वीरता की कमी नहीं थी| भीम ने अनेक भाइयों का वध किया| भीम और नकुल ने कर्ण के साथ भी युद्ध किया| कर्ण ने भीम को अधमरा कर दिया| परन्तु कुंती को दिये गए वचन को स्मरण करके उन्होंने भीम को छोड़ दिया| और फिर कर्ण की लड़ाई भीम और हिडिंबी के पुत्र घटोत्कच से हुई| घटोत्कच ने अदम्य साहस के साथ कर्ण से युद्ध किया| कर्ण का कोई भी बाण घटोत्कच को टस से मस न कर सका और सहसा कर्ण को आभास हुआ कि वह भीम-पुत्र को पराजित नहीं कर पाएगा| अचानक, बिना सोच-विचार के, कर्ण ने विद्युत-सा प्रहार करने वाला इंद्र द्वारा दिया गया अस्त्र घटोत्कच पर फेंका| घटोत्कच मारा गया| जिस अस्त्र से घटोत्कच का वध हुआ वह केवल एक बार ही प्रयोग किया जा सकता था, अतः अस्त्र इंद्र के पास लौट गया| कर्ण अपना सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली अस्त्र खो बैठे थे| अब उन्हें अर्जुन से उसके बिना ही युद्ध करना होगा| दुखी मन से कर्ण वापस शिविर में लौट गए|
कृष्ण द्वारा फैलाई धुंध छँट चुकी थी और अब सूर्य ढल रहा था, परन्तु दुर्योधन ने आज्ञा दी युद्ध जारी रखा जाए| दुर्योधन और दुशासन के अतिरिक्त सभी कौरव भाइयों की मृत्यु हो चुकी थी| घटोत्कच की मृत्यु का समाचार सुनकर भीम तथा बाकी पांडव बहुत खिन्न थे|
कर्ण और द्रोण चारों ओर से पांडव सैनिकों को मौत के घाट उतार रहे थे| बाणविद्या में द्रोण की कुशलता देखते ही बनती थी| उनके सामने कोई नहीं टिक पा रहा था| विजय के लिए द्रोण की मृत्यु का उपाय खोजना आवश्यक था| परन्तु इस महान योद्धा का वध एक असंभव कार्य था| कृष्ण ने कहा कि अश्वत्थामा की मृत्यु की घोषणा करने पर ही द्रोण युद्धभूमि छोड़ेंगे| “क्या?” युधिष्ठिर ने चौंककर पूछा| “असत्य? नहीं, नहीं, मैं असत्य वचन नहीं कह सकता|”
उसी क्षण भीम ने अपनी गदा से अश्वत्थामा नामक हाथी को मार दिया| भीम जोर से चिल्लाए, “मैंने अश्वत्थामा को मार डाला मैंने अश्वत्थामा का वध कर दिया|”
द्रोण ने शत्रुओं के शिविर में से आता भीम का स्वर सुना और कंपित स्वर में कहने लगे, “यह असत्य है, यह सत्य हो ही नहीं सकता| अश्वत्थामा की मृत्यु नहीं हो सकती|” इस बात की पुष्टि के लिए उन्होंने पुकार कर युधिष्ठिर से पूछा, “क्या अश्वत्थामा मारा गया?” युधिष्ठिर निस्तब्ध खड़े सोचते रहे, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहें| सभी अपना श्वास रोके उनके उत्तर की परीक्षा कर रहे थे| युधिष्ठिर आँखे बंदकर विचार करने लगे, “मुझे पाप करना होगा, मुझे असत्य वचन कहने होंगे| अपनी सेना के लिए मै यह पाप अपने सिर लूँगा|” और उन्होंने कहा, “अश्वत्थामा की मृत्यु हो गई, अश्वत्थामा-हाथी-मारा गया|” परन्तु उनके अंतिम शब्दों को कोई नहीं सुन पाया, क्योंकि द्रोण और उनके सैनिकों के चीखने, चिल्लाने और रोने की तीव्र आवाज सब तरफ फैल चुकी थी| द्रोण रोते-रोते मूर्छित हो गए, कौरव सेना भी उनके दुःख में सम्मिलित हो विलाप करने लगी| अश्वत्थामा वीर और तेजस्वी युवक था| द्रोण उसे अपने प्राणों से भी अधिक स्नेह करते थे|
युधिष्ठिर अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी असत्य नहीं बोले थे| वे साधारण मनुष्यों से अलग थे| यहाँ तक कि सत्यवादी होने के कारण देवता भी उनका आदर करते थे| इस एक झूठ के कारण उनका रथ, जो सदा भूमि से कुछ ऊँचाई पर रहता था, एक धक्के के साथ नीचे आ गया-साधारण लोगों की भांति|
जब द्रोण को विश्वास हो गया कि अश्वत्थामा की मृत्यु हो गई है, तो उन्होंने ने अपने अस्त्र डाल दिए और युद्ध में भाग न लेने की घोषणा कर दी| हथियार डालकर वे प्रार्थना और चिंतन के लिए बैठ गए| धृष्टद्युम्न इसी पल की प्रतीक्षा में थे| पास खड़े सभी लोगों ने धृष्टद्युम्न से कहा कि जो ध्यान में तल्लीन हो उसे मारना अनुचित है| परन्तु उसने अपनी तलवार निकालकर एक हाथ से द्रोण का सिर काट डाला| निहत्थे द्रोण के वध को देख सभी भयभीत हो उठे| द्रुपद की प्रार्थना, जो उन्होंने ने बहुत समय पहले की थी, पूर्ण हुई| उनके पुत्र धृष्टद्युम्न में उस व्यक्ति की हत्या की, जो कभी उनका मित्र था|