अपूर्व क्षमाशीलता
भारत के महाराष्ट्र प्रदेश में संत एकनाथ नामक एक तपस्वी महात्मा हुए हैं| एक दिन वह नदी से स्नान कर अपने निवास स्थान की ओर लौट रहे थे कि रास्ते में एक बड़े पेड़ से किसी ने उन पर कुल्ला कर दिया|
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एकनाथ ने ऊपर देखा तो पाया कि एक आदमी ने उन पर कुल्ला कर दिया है| वह एक शब्द तक नहीं बोले- सीधे नदी पर दुबारा गए, फिर स्नान किया|
उस पेड़ के नीचे से वह लौटे तो उस आदमी ने फिर उन पर कुल्ला कर दिया| एकनाथ बार-बार स्नान कर उस पेड़ के नीचे से गुजरते और वह बार-बार उन पर कुल्ला कर देता| इस तरह से एक बार नहीं, दो बार नहीं संत एकनाथ ने 108 बार स्नान किया और उस पेड़ के नीचे से गुजरे, और वह दुष्ट भी अपनी दुष्टता का नमूना पेश करता रहा| एकनाथ अपने धैर्य और क्षमा पर अटल रहे| उन्होंने एक बार भी उस व्यक्ति से कुछ नहीं कहा| अंत में वह दुष्ट पसीज गया और महात्मा के चरणों में झुककर बोला- “महाराज, मेरी दुष्टता को माफ कर दो| मेरे जैसे पापी के लिए नर्क में भी स्थान नहीं है| मैंने आपको परेशान करने के लिए खूब तंग किया, पर आपका धीरज नहीं डिगा| मुझे माफ कर दे|”
महात्मा एकनाथ ने उसे ढांढस देते हुए कहा- “कोई चिंता की बात नहीं| तुमने मुझ पर मेहरबानी की; आज मुझे 108 बार स्नान करने का तो सौभाग्य मिला| कितना उपकार है तुम्हारा मेरे ऊपर|”
संत के कथन से वह दुष्ट युवक पानी-पानी हो गया|
क्षमादान ही सबसे बड़ा दान है|