अनमोल खज़ाना
स्वर्णनगरी में एक भिश्ती (पानी भरनेवाला) रहता था| वह दिन-रात मेहनत करने के बाद भी मुश्किल से गुज़ारा चला पाता था|
एक दिन संयोग से उसने एक पैसा ज्यादा कमा लिया| वह रास्तेभर यही सोचता हुआ जा रहा था कि इस एक पैसे को वह कहाँ छिपाए? अचानक उसे किले की दीवार दिखाई दे गई| वह करीब पहुँचा और उसमें लगी ईंटो को देखा, फिर ज़मीन से दसवें नंबर की ईंट जो की ढीली थी, उसे निकालकर उसके नीचे पैसे को छिपा दिया|
कुछ समय बाद भिश्ती ने एक लड़की से शादी कर ली| एक दिन की बात है सुवर्णनगरी में मेला लगा हुआ था| भिश्ती की पत्नी बोली, ‘काश! हम भी मेले में जाकर मौज-मस्ती करते| परंतु हमारे पास पैसे तो है ही नही|’
भिश्ती ने कहा, ‘मेरे पास एक पैसा है मैं अभी लेकर आता हूँ|’
भिश्ती की पत्नी ने कहा, ‘जल्दी आना|’
भीषण गर्मी में वह दौड़ता हुआ अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था|
उधर राजमहल की छत पर खड़ा राजा उसे देख रहा था| राजा ने सोचा, ‘भिश्ती इतनी दोपहरी में नंगे पैर खुशी-खुशी कहाँ भागा जा रहा है ?’ उसने भिश्ती को पकड़ने के लिए अपने सिपाही दौड़ाए|
सिपाहियों ने भिश्ती को पकड़ लिया और कहा, ‘चलो, तुम्हें राजा ने बुलाया है|’
‘नही, अभी मुझे एक बहुत ज़रुरी काम है|’ भिश्ती गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘मुझे छोड़ दो|’
मगर सिपाहियों ने उसकी एक न सुनी और राजा के पास जबरदस्ती ले आए|
‘इतनी गर्मी में तुम नंगे पैर कहाँ भागे जा रहे थे? क्या तुम्हारे पैर नही जलते?’ राजा ने पूछा|
‘मुझे मेरी इच्छा जला रही है महाराज, धूप नही|’ भिश्ती ने विनती करते हुए कहा|
‘ऐसी कौन-सी इच्छा है तुम्हारी?’ राजा ने पूछा|
‘आपके महल की उत्तरी दीवार में छिपे अपने खजाने को निकालकर अपनी पत्नी का मन बहलाना चाहता हूँ|’ भिश्ती ने कहा|
‘क्या तुम्हारा खजाना बहुत बड़ा है?’ राजा ने पूछा|
‘हाँ महाराज| पूरा एक पैसा है|’ भिश्ती ने गर्व से कहा|
‘एक पैसा!’ राजा का मुँह खुला-का-खुला रह गया|
‘हाँ महाराज| उससे कई चीजें खरीदकर अपनी पत्नी को खुश कर सकता हूँ|’ भिश्ती ने कहा|
‘ओह!’ राजा ने लंबी हुंकार भरी और बोला, ‘मैं तुम्हें एक पैसा दे देता हूँ, तुम्हें उत्तरी दीवार तक जाने की जरुरत नही है|’ कहकर राजा ने भिश्ती को एक पैसा दिया और कहा, ‘अब तुम अपने घर जाओ|’
‘आप जो दे रहे हैं, वह तो ठीक है, लेकिन मैं अपना एक पैसा भी ले जाऊँगा|’ भिश्ती ने पैसा पकड़ते हुए कहा|
‘तुम वहाँ मत जाओ, मैं तुम्हें दो पैसे दूँगा|’
‘मगर फिर भी मैं वहाँ जाऊँगा|’
राजा सोच में पड़ गया| उसने पैसों की संख्या दो से चार…चार से…हज़ार और फिर लाखों तक पहुँचा दी| मगर भिश्ती ने अपना एक पैसा छोड़ना मंजूर नही किया|
आखिर राजा ने कहा, ‘मैं तुम्हें आधा राज्य देने को तैयार हूँ, मगर तुम उत्तरी दीवार तक नही जाओगे|’
भिश्ती ने इस बार समर्पण कर दिया|
‘अब तुम भी राजा बन गए हो| बोलो…कौन-सा भाग लेना चाहोगे?’ राजा ने पूछा|
भिश्ती ने पलभर सोचा और कहा, ‘महाराज मैं राज्य का उत्तरी भाग लेना चाहूँगा|’
आखिरकार राजा ने हार स्वीकार कर ली|
इस प्रकार भिश्ती आधा राज्य प्राप्त करने के साथ-साथ उत्तरी दीवार में संचित अपनी पूंजी ‘एक पैसा’ प्राप्त करने में भी सफल हो गया|
शिक्षा: परिश्रम से की गई कमाई का सुख कमानेवाला ही जानता है| वह उसे किसी भी कीमत पर गँवाना नही चाहता| भिश्ती को आधा राज्य और ढेर सारा धन बिना माँगे मिल गया था, लेकिन फिर भी वह अपने एक पैसे का लोभ न छोड़ सका| मेहनत की कमाई ही अनमोल खजाना है|