अमीरी का लालच
परमसुख अपने परिवार के साथ सुख से रहता था| उसकी तीन लड़कियाँ थी| एक दिन उसका अकास्मिक निधन हो गया|
उसकी पत्नी और तीनों बेटियाँ विलाप करने लगी| उन्हें विलाप करते देख कुछ दयालु पड़ोसी वहाँ आ गए और उन्हें धैर्य बँधाया|
उधर परमसुख ने एक सुनहरे हंस के रुप में जन्म लिया|
एक दिन सुनहरे हंस ने सोचा कि क्यों न मैं अपनी पत्नी और बच्चों को देख कर आऊँ, न जाने किस हाल में होंगे| यह सोचकर वह नगर की ओर उड़ चला|
वह अपने घर की छत पर जा बैठा| अपनी पत्नी और बच्चों की हालत देखकर उसे बहुत दुख हुआ| क्योंकि उसके बीवी-बच्चे दूसरों के रहमो-करम पर पल रहे थे|
उसकी पत्नी ने जब सुनहरा हंस देखा तो उसे पकड़ने के लिए वह छत पर जा चढ़ी|
‘मैं तुम्हारा पति हूँ|’ सुनहरे हंस ने कहा, ‘मैं तुम्हें एक सुनहरा हंस देता हूँ, इसे बेचकर तुम अपने और बच्चों के लिए सुंदर-सुंदर कपड़े और खाने का सामान ले आओ|’ यह कहकर उसने अपना एक पंख उखाड़कर उसे दे दिया|
अब वह हर हफ्ते आता और एक सुनहरा पंख उन्हें दे जाता|
अब उसके बीवी-बच्चे सुखपूर्वक रहने लगे, वे अब काफ़ी धनवान हो चुके थे|
लेकिन उसकी पत्नी के मन में लालच डेरा जमा चुका था| एक दिन उसने अपनी बेटियों से कहा, ‘अगर सुनहरा हंस आना बंद कर दे तो क्या होगा? इसलिए अगली बार जब वह आएगा तो मैं उसके सारे पंख नोच लूँगी|’
‘नही माँ, ऐसा हरगिज़ मत करना|’ उसकी बेटियों ने समझाया|
लेकिन वह अपने निश्चय पर अडिग रही|
अगली बार जब हंस आया तो स्त्री ने हंस की गर्दन पकड़ ली और उसके सारे पंख नोचने शुरु कर दिए|
हंस ने लाख विनती की कि कम-से-कम एक पंख तो छोड़ दे, मगर वह नही मानी|
लेकिन अगले ही पल वह चौंक उठी| क्योंकि वे तो सफ़ेद रंग के मामूली पंख थे| वह रोने लगी, ‘हाय! मेरे साथ धोखा हुआ है|’ कहकर वह छाती पीटने लगी|
‘मैं तुम्हें सचेत करना भूल गया था| तुमने मेरी मर्जी के बिना ये पंख नोचे है, इसलिए मेरे पंख सफ़ेद हो गए|’ हंस ने दुख भरे स्वर में कहा|
‘भूल गए थे, लापरवाह कहीं के| लेकिन हम तो बरबाद हो गए न| तेरे जैसे बेकार पंछी की जगह इस कूड़ेदान में है|’ यह कहकर उसने हंस को कूड़ेदान में फेंक दिया|
कुछ ही समय बाद हंस के पंख फिर निकल आए, पर वे सफ़ेद ही थे| अब उसका वहाँ मन भी नही लगता था| वह उड़कर अपने उसी स्थान पर पहुँच गया जहाँ वह रहता था|
उधर लालची स्त्री का धन धीरे-धीरे समाप्त हो गया और वही पुराने दिन शुरु हो गए|
शिक्षा: धन की लालसा ऐसी होती है कि निर्धन हो या धनी- सभी इसकी चपेट में आ जाते हैं| गरीब अपने दुखों के चलते धन की इच्छा रखता है तो धनी की इच्छा उसे और बढ़ाने की होती है| लेकिन धन के लिए लालच करना ठीक नही| वरना वैसा ही हाल होगा जैसा उस स्त्री का हुआ|