आततायी से क्षमा का व्यवहार
प्राचीन समय की घटना है| गजनी के बादशाह मुहम्मद गोरी ने भारत पर हमला किया था| उन दिनों देश में कोई केंद्रीय सत्ता मजबूत नहीं थी|
“आततायी से क्षमा का व्यवहार” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
मुसलमानी जिहादी सेना पहले लाहौर पर चढ़ दौड़ी, फिर आगे बढ़ी| भटिंडा के किले पर तीन महीने राजपूत इन विदेशी आक्रमणकारियों को रोके रहे|
तब तक दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान की फौज भी संगठित हो गई| उनकी मदद के लिए उनके बहनोई अजमेर के महाराणा समर सिंह भी आ गए| थानेश्वर के समीप तरावड़ी के मैदान में भारतीय सेना ने विदेशी हमलावरों से टक्कर ली| जल्द ही विदेशी सेना परास्त हो गई| मुहम्मद गौरी भी पकड़ा गया| उस समय दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी से पूछा- “तुमसे कैसा व्यव्हार किया जाए?” गौरो ने नीची निगाह कर कहा- जैसा कि आप एक गाय से व्यवहार करते हैं|”
समरसिंह बोले- “गाय?” पृथ्वीराज ने हमलावर गोरी को छोड़ दिया| कुछ ही समय बाद नई तैयारी के साथ मुहम्मद गोरी ने भारत पर पुनः हमला किया| कहते हैं कि कन्नौज के राजा जयचन्द ने इस बार उसे न्योता दिया था| इस बार फिर लड़ाई हुई| अपने ही देशवासियों के बटे होने से भारत शताब्दियों के लिए पराधीन हो गया| आततायी से क्षमा का व्यवहार देश को महँगा पड़ा| पृथ्वीराज और उनके राजकवि चन्द बरदाई पकड़े गए| दोनों गजनी ले जाए गए| वहीं उन्होंने अंधे किए जाने के बावजूद शब्दबेधी बाण का प्रयोग कर मुहम्मद गौरी को मार डाला| उन्होंने अपना सम्मान तो बचा लिया, पर देश का सम्मान वापस न आ सका| इस कहानी से पता चलता है कि आत्म-सम्मान के साथ जीना ही जीना होता है अपमानित जीवन से मरना अच्छा है|