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आत्मघाती अभिलाषा

पंचवटी के सघन जंगलों में एक मदमस्त हाथी रहता था| वह जिधर से भी निकलता, उधर ही हाहाकार मच जाता| सभी जानवर प्राण बचाते हुए इधर-उधर भाग खड़े होते| इसी भाग-दौड़ में अनेक जानवर तो जीवन ही गँवा बैठते थे|

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दरअसल, इस जंगल में अन्य जानवरों की अपेक्षा गीदड़ ही अधिक रहते थे और वे ही हाथी के पैरों तले अधिक रौंदे जाते थे| अतः इस संकट से निपटने के लिए गीदड़ों ने एक सभा की| उस सभा में एक बूढ़े गीदड़ ने प्रण किया कि वह अपने बुद्धिबल से हाथी का काम-तमाम करेगा|

उसकी बात सुनकर सभी भौचक्के रह गए| भला गीदड़ भी कहीं हाथी को मार सकता है!

अगले दिन बूढ़ा गीदड़ बेखौफ़ होकर गहने पेड़ों की आड़ में बैठे हाथी के पास पहुँचा और सर्वप्रथम हाथी को प्रणाम किया|

‘कहो, तुम्हारा आगमन कैसे हुआ?’ हाथी ने आश्चर्य से उसकी तरफ़ देखते हुए कहा|

‘बस, मैं तो अपने राजा के दर्शन करने चला आया|’ बूढ़ा गीदड़ बोला|

‘क्या तुम मुझे राजा मानते हो?’ हाथी ने खुश होते हुए पूछा|

‘राजा तो आप है ही| मानने या न मानने वाली बात कहाँ से आ गई| वैसे भी कल जंगल के जानवरों की एक सभा हुई थी| सबने एक प्रस्ताव पारित करके मुझे आपके पास भेजा है| वे सभी आपको ही राजा बनाना चाहते है क्योंकि आपमें वे सभी गुण है, जो एक राजा में होने चाहिए| मेरी तो आपसे यही प्रार्थना है कि आप हमारे राजा बन जाए|’

राजा बनने के नाम पर हाथी बहुत खुश हुआ| उसके मुख से शब्द ही नही निकल पाए|

हाथी को चुप देखकर गीदड़ बोला, ‘महाराज! अब आप मेरे साथ चलने का कष्ट करे| मैं आपको उन सब लोगों से मिलवाता हूँ, जो आपको राजा के रूप में देखने के लिए लालायित है| वे जल्दी-से-जल्दी आपका राजतिलक करना चाहते है|’

मूढ़ हाथी जंगल का राजा बनने की अभिलाषा में उसी क्षण गीदड़ के साथ चल पड़ा| उसने यह भी विचार नही किया कि गीदड़ उसे राजा बनाने के लिए उसके घर पर क्यों आया है|

उधर बूढ़ा गीदड़ मन-ही-मन बहुत खुश था कि हाथी उसकी चाल में फँस गया|

दोनों चल पड़े| गीदड़ हाथी को उस रास्ते से लेकर चला, जहाँ पर बहुत अधिक दलदल था| हाथी राजा बनने के नशे में अंधाँ हो चुका था| उसे सूझा ही नही कि वह किधर जा रहा है और जब उसके पाँव दलदल में पड़े तो वह हड़बड़ाया और इस हड़बड़ाहट में कूछ और अंदर धंस गया| तब कही जाकर उसे पता चला कि वह दलदल में फँस गया है| उसने पीछे हटना चाहा, मगर तब तक देर हो चुकी थी| हाथी का भारी-भरकम शरीर भीतर धँसता जा रहा था| उसने घबराकर गीदड़ की तरफ़ देखा तो वह मुस्कुरा रहा था| उसकी मुस्कुराहट से हाथी समझ गया कि उसके साथ चाल चली गई है| लेकिन अपने बचाव का उसके पास कोई भी उपाय न था| इस प्रकार वह दलदल में फँसकर मर गया|


कथा-सार

दुर्बल पर अत्याचार करना ठीक नही होता| जब गीदड़ दुष्ट हाथी से अत्यधिक दुखी हो गए तो उन्होंने बुद्धि व छल से उसका अंत कर दिया| हाथी भी राजा बनने की आस में भला-बुरा सोचने की शक्ति गँवा बैठा था| नाग के बिल में खज़ाना छिपा है, यह जानकर भी कोई सीधे ही बिल में हाथ तो नही डाल देता|